हरिद्वार, 6 दिसंबर (हि.स.)। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने हरिद्वार में इजिप्शियन वल्चर यानी गिद्धों के संरक्षण के लिए नया प्रोजेक्ट शुरू किया है। एनजीओ ने राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर रेंज में एक इजिप्शियन वल्चर को सैटेलाइट जीपीएस टैग लगाकर छोड़ा।
मोतीचूर फॉरेस्ट रेंज के कोयल पुरा सघन वन में छोड़े गए गिद्ध से गिद्धों के विचरण, उड़ने की क्षमता, रहन-सहन और भोजन के बारे में रियल टाइम जानकारी मिल सकेगी। पर्यावरण और गिद्धों के संरक्षण के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के द्वारा सेकंड फेज का ये कार्यक्रम मोतीचूर रेंज से शुरू किया गया है। गिद्ध को रिलीज करने के दौरान एनजीओ और राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे।
प्रोजेक्ट मैनेजर सनी जोशी ने बताया कि गिद्धों की कई प्रजातियां हैं, जिनकी जानकारी जुटाई जाएगी। कई प्रजाति के गिद्ध स्थानीय वातावरण में रहते हैं। जैसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब और अन्य राज्यों में विचरण करते रहे हैं। कई गिद्ध भारत के अलावा अन्य देशों की यात्राएं करते हैं। कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और मध्य एशिया के देशों में करीब 15 से 20 हजार किलोमीटर की यात्रा करके ये गिद्ध फिर वापस भारत लौट आते हैं। ये सर्दियों के मौसम में ही वापस आते हैं। फिलहाल इससे पूर्व में यूरेशियन गिद्ध को जीपीएस टैग लगाकर उड़ाया गया था, जो करीब 15 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके वापस भारत लौटा है।
प्रोग्राम डायरेक्टर सेजल बोरा ने बताया कि भारत में गिद्धों की प्रजातियों को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। इससे पूर्व में रिसर्च की आ चुकी हैं। मोतीचूर रेंज में ही नया प्रयाग शुरू किया गया है। जीपीएस से पता चलेगा कि गिद्ध राजाजी पार्क से उड़कर कहां जाते हैं और उनका कैसा आचरण रहता है। इस सब पर नजर रखी जाएगी। यह प्रोजेक्ट बहुत ही महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। एक इजिप्शियन वल्चर को जीपीएस लगाकर सफलतापूर्वक छोड़ा गया है। यह गिद्ध सेहत में बहुत अच्छा है। अब यह बहुत सारा डेटा देगा, जो रिसर्च में महत्वपूर्ण साबित होगा।
विदित हो कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया संस्था वन्यजीव और पक्षियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य करती है। वैसे तो अधिकारियों के मुताबिक यह संस्था उत्तराखंड में पिछले कई वर्षों से कार्य कर रही है, लेकिन राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर रेंज में नया प्रोजेक्ट शुरू किया गया। यहां से एक गिद्ध को जीपीएस लगाकर उड़ाया गया है। लगातार उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। जांच की जा रही है कि उत्तराखंड में रहने वाले गिद्धों की प्रजातियों की किस तरह की गतिविधियां रहती हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला



