रामचंद्र शुक्ल ने काव्यशास्त्र व साहित्य सिद्धान्तों का गम्भीर अध्ययन किया : प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह

--साहित्य ऐसी विधा जो मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ती है : प्रो सत्यकाम

प्रयागराज, 04 अक्टूबर (हि.स.)। उप्र राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के मानविकी विद्याशाखा के तत्वावधान में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जयंती पर लोकमंगल की अवधारणा और रामचन्द्र शुक्ल विषयक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता इविवि के प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह ने रामचन्द्र शुक्ल पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि शुक्ल जी ने काव्यशास्त्र और साहित्य सिद्धान्तों का गम्भीर अध्ययन किया। जो बाद में उनकी पुस्तक रस मीमांसा और चिंतामणि में सुचिंतित रूप में व्यक्त हुई।

शुक्रवार को संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि हिन्दी आलोचना को संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रभाव से मुक्त कराने तथा हिन्दी का अपना व्यवस्थित शास्त्र निर्मित करने की दृष्टि से रस मीमांसा एक महत्वपूर्ण कृति है। ‘चिंतामणि‘ में उन्होंने मनोविकार सम्बंधी निबंधों के साथ-साथ साहित्य सिद्धान्तों का भी विश्लेषण मूल्यांकन किया। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रस-मीमांसा में रस पर आधारित विस्तार पूर्वक चर्चा की है। इसी प्रकार उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास की व्यवहारिक व्याख्यात्मक आलोचना तथा जायसी ग्रन्थावली तथा भ्रमरगीत सार की भूमिकाओं में क्रमशः जायसी और सूरदास के काव्य पक्ष का सुन्दर वर्णन किया है। आचार्य रामचन्द्र मूल रूप से रस वादी आलोचक माने जाते हैं। उन्होंने लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोक मंगल की भावना साधारणीकरण से जुड़ी हुई है। जिसका आशय ऐसे साहित्य का सृजन है जो साधारण जनमानस की पहुंच तक हो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते मुक्त विवि के कुलपति आचार्य सत्यकाम ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी रचनाओं में साहित्य के मार्मिक अंशों को प्रस्तुत किया है। लोक मंगलकारी से सम्बंधित भाव उन्होंने रामचरित मानस का आधार बना कर किया। उन्होंने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कृतियां केवल साहित्य के लिए उपादेय नहीं है, बल्कि सभी विधाओं के लिए है। उनकी रचनाएं सभी को पढ़ना चाहिए। साहित्य एक ऐसी विधा है जो मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ती है। उन्होंने विज्ञान के छात्रों को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे मानवीय मूल्यों का संवर्धन हो सके।

कार्यक्रम की संयोजक प्रो रुचि बाजपेई ने कहा कि रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के अत्यंत समादृत लेखक और आलोचक हैं। डॉ. रामविलास शर्मा उन्हें आलोचना के क्षेत्र में उतने ही महत्व से रखते हैं, जो महत्व प्रेमचंद का उपन्यास और निराला का कविता में है। कार्यक्रम समन्वयक प्रो सत्यपाल तिवारी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि रामचन्द्र शुक्ल द्वारा प्रयुक्त लोकमंगल शब्द का आधार रामचरित मानस ही है। शुक्लजी की लोकमंगल की अवधारणा का सम्बंध जीवन के प्रयत्न पक्ष से जोड़ा है। पीआरओ डॉ प्रभात चंद्र मिश्र ने बताया कि संचालन डॉ.अब्दुर्ररहमान फैसल तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.साधना श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर निदेशक, आचार्यगण, शोधार्थी एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

   

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