श्री काशी विश्वनाथ धाम के तीसरी वर्षगांठ पर हाेगा वैदिक यज्ञ जयादी होम , महारूद्र पाठ का आयोजन

—धार्मिक अनुष्ठान मंगलवार से, सप्त चिरंजीवियों के आवाहन से हाेगी शुरूआत

वाराणसी, 09 दिसम्बर (हि.स.)। श्री काशी विश्वनाथ धाम (कॉरिडोर) के तीसरी वर्ष गांठ पर 13 दिसम्बर को दरबार में विविध धार्मिक अनुष्ठान होंगे। इसकी शुरूआत मंगलवार (10 दिसम्बर) को सप्त चिरंजीवियों का आवाहन से होगी। चार दिवसीय धार्मिक आयोजन में पंचमुखी हनुमान जी मंदिर (ढुंढिराज गणेश के सन्निकट) में विशिष्ट शास्त्रीय पूजन विश्वेश्वर शास्त्री द्राविड़ की देखरेख में होगा।

मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र के अनुसार ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 13 दिसम्बर को श्री काशी विश्वनाथ धाम नवीनीकृत कॉरिडोर परिसर के निर्माण का 3 वर्ष पूर्ण हो रहा है। वहीं, विक्रम संवत के अनुसार स्थापना की तिथि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को स्थापना की वर्षगाँठ पूर्ण होती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 10 दिसम्बर को है। ऐसे में धामिर्क कार्यक्रमों की श्रृंखला मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाएगी। उन्होंने बताया कि धाम में 12 दिसम्बर को महारूद्र पाठ का आयोजन एवं 13 दिसम्बर को धाम में स्थित सभी देव विग्रह का अभिषेक प्रातः काल शास्त्रों में वर्णित विधि से सम्पन्न किया जाएगा। अपरान्ह एक बजे वैदिक यज्ञ जयादी होम का आयोजन सर्व सनातन विजय की कामना के साथ वैदिक विधि से किया जाएगा। इसके अलावा मंदिर प्रांगण में चतुर्वेद पारायण भी प्रारम्भ होगा। जिसे सायंकाल तक सम्पन्न कर लिया जाएगा। पूर्वांह 11 बजे से मंदिर चौक परिसर में मंदिर न्यास के अर्चकों एवं कार्मिकों के लिए निःशुल्क नेत्र परीक्षण एवं लघु उपचार शिविर का आयोजन शंकर नेत्रालय के सहयोग से होगा। 13 दिसम्बर को प्रदोष तिथि भी है। ऐसे में नंदी अभिषेक भी सम्पन्न किया जाएगा। सायंकाल सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शिवार्चनम संध्या का आयोजन मंदिर चौक में होगा।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में काशी के संगीत कलाकार नीरज सिंह, सितार वादक देवव्रत मिश्र एवं भजन गायक एवं बॉलीवुड सिंगर अभिजीत घोषाल अपनी प्रस्तुति देंगे। उन्होंने बताया कि शिव आराधना में तीन का विशिष्ट महत्व है। महादेव ही आदियोगी हैं। समस्त यौगिक साधनाओं में नाड़ी सिद्धि का विशिष्ट महत्व है। मानव नाड़ियों में अंतत: तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना की सिद्धि को महायोग कारक माना गया है। समस्त शैव प्रतीक त्रिविध रूपों में इन सिद्धियों के प्रति संकेत करते प्रतीत होते हैं। भगवान शिव के समस्त प्रतीक चिन्ह यथा त्रिशूल, त्रिपुंड, बिल्व–त्रिपत्र, त्रि–शिखर सहित त्रिपुरासुर विनाशक के स्वरूप में महादेव की अर्चना की जाती है। शैवागम के अनुसार परमशिव ही स्वयं को त्रिदेव स्वरूप में ब्रह्मा विष्णु महेश के स्वरूप में व्यक्त करते हैं। परमशिव ही तीन लोकों के स्वामी तथा मनुष्य की त्रिविध अवस्थाओं पूर्व जन्म, वर्तमान जन्म तथा भविष्य के जन्म की त्रिविधि मुक्ति कल्याण के देव हैं। तीनों लोकों के पुण्य फलीभूत भी महादेव की कृपा से ही होते हैं। ऐसे में धाम की इस तीसरे वर्षगांठ का महत्व भी विशिष्ट है।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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