स्वार्थ का दैत्य भारत को दबाने की कोशिश में है, लेकिन सत्य कभी दबता नहीं : मोहन भागवत

पंडित रामकिंकर उपाध्याय जन्म शताब्दी समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

सतना/भोपाल, 6 नवंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि यह विश्व हमारे ऋषि-मुनियों को हुई सत्य की अनुभूति का परिणाम है। राष्ट्र की नींव में भी सनातन धर्म का वही मूल है जिसमें सभी को धारण करने की क्षमता है। आज देश में धर्म-अधर्म की लड़ाई चल रही है। स्वार्थ का दैत्य भारत को दबाने की कोशिश में है, लेकिन उनकी कोशिशें कभी सफल नहीं होंगी, क्योंकि सत्य कभी दबता नहीं है।

डॉ. भागवत बुधवार को चित्रकूट में आयोजित मानस मर्मज्ञ बैकुंठवासी पंडित रामकिंकर उपाध्याय जन्म शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अब अपने देश को ठीक करना है। यहां धर्म-अधर्म की लड़ाई चल रही है। हम ईश्वर प्रदत्त अपना-अपना कर्तव्य निभाएं, यह अपेक्षा है। यानी धर्म के पक्ष में खड़े हो जाएं लेकिन यह होना है तो आचरण आना चाहिए। एक तरफ स्वार्थ का दैत्य उभरते भारत को दबाने यानी सत्य को दबाने का प्रयास कर रहा है। इसमें वो कभी सफल नहीं होंगे। सत्य कभी दबता नहीं है। हमारी हस्ती इसलिए भी नहीं मिटती, क्योंकि उस हस्ती को हमारी ऋषि-संतों की परंपरा, ईश्वर निष्ठों की मंडली का आशीर्वाद प्राप्त है।

सरसंघचालक ने कहा कि भारत, हिन्दू और सनातन धर्म एकाकार हैं। सनातन धर्म को जन-जन के आचरण में लाना है, भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देना है। रूप-रंग और पूजा पद्धति में विविधता के बाद भी हम एक हैं। ऋषि-मुनियों को लगा कि हमें जो शाश्वत सत्य मिला वो सब को देना चाहिए तो बड़े परिश्रम के बाद राष्ट्र बना। हमारा राष्ट्र विश्व को धर्म देने के लिए बना, लेकिन धर्म ऐसे दिया नहीं जा सकता। धर्म की जानकारी से धर्म प्राप्त नहीं होता। धर्म के आचरण से धर्म प्राप्त होता है। महाभारत से शिक्षा मिलती है कि यह दुनिया कैसी है और रामायण से शिक्षा मिलती है कि उस दुनिया में हमें कैसे रहना है।

उन्होंने कहा कि जो भगवान की इच्छा होती है वही होता है। वो बिना आवाज की लाठी है। भगवान की इच्छा है तो भारत का उत्थान हो रहा है। मंदिर भी अयोध्या में बना, बिना संसाधनों के संघ भी खड़ा हुआ। भगवान की भी इच्छा को पूरी करने के लिए पुरुषार्थी लोगों को शस्त्र धारण करने उतरना पड़ता है। समाज को तैयार होना होगा। उन्होंने कहा कि व्यापार, खेल सब चल रहा है। जीत-हार चल रही है। देश को बड़ा बनाना, लोगों को खुशहाल रखना, दुनिया को राहत देना, ये सब चल रहा है। ये सब बाहर की बातें हैं, ये सब भौतिक साधन हैं। ये सब तो चाहिए, लेकिन इन सब को धारण करने वाला राम चाहिए। अयोध्या में मंदिर तो बन गया, लेकिन विश्व में कोई युद्ध न हो, इसके लिए मन की अयोध्या चाहिए। ये तब होगा जब रामायण, महाभारत की कथा के जरिए इसके मर्मज्ञ लोगों को इन कथाओं में छिपे जीवन दर्शन, रहस्य से परिचित करा कर उनके मन में राम के प्रकाश को जगाएंगे।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने रामकिंकर उपाध्याय के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कहा कि उन्होंने रामकथा को अपने जीवन और आचरण में उतारा। धर्म को जी कर दिखाया। कैसे रामकथा इस धरा में प्रलयकाल तक चिर अनंतकाल तक रहने वाली है, यह तो कहा जाता है, लेकिन धर्म तत्व के गूढ़ रहस्यों से उन्होंने सब को परिचित कराया। कथा तो हम भी संघ में बहुत कहते हैं, लेकिन ऐसे आचरण सम्पन्न, धर्म सम्पन्न, पुरुषार्थ सम्पन्न लोग जब ये बताते हैं तो उसके परिणाम मिलते हैं। भक्ति भाव से कथा श्रवण करने से लोगों को जीवन को और उन्नत करने वाला तत्व मिलता है। जीवन परिवर्तन होता है। यह सब हम कर सकें तो यही रामकिंकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। अंत में उन्होंने कहा कि अच्छा भोजन करने के बाद थोड़ा सा कड़वा चूर्ण खाने से हाजमा ठीक होता है। मेरे वक्तव्य को उसी चूर्ण की तरह समझें। कार्यक्रम में राष्ट्रीय संत मुरारी बापू समेत सहित कई संत, महंत और कथावाचक भी मौजूद रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

   

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