- डा. ईश्वर भारद्वाज को गीता रत्न, मनीषा चौहान व जेपी जुयाल सहित छह को हरिद्वार गौरव सम्मासन
हरिद्वार, 29 दिसंबर (हि.स.)। अध्यात्म चेतना संघ द्वारा आर्य नगर में आयोजित विराट श्रीमद्भगवद् गीता महोत्सव के अन्तर्गत गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व योग विभागाध्यक्ष तथा वर्तमान में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में योग विभाग में अकादमिक डीन के पद कर कार्यरत प्रोफेसर ईश्वर भारद्वाज को गीता रत्न सम्मान से विभूषित किया गया। उनकी अस्वस्थता के कारण उनकी ओर से यह सम्मान डा. भारद्वाज की धर्मपत्नी श्रीमती मिथलेश भारद्वाज ने ग्रहण किया।
इसके साथ ही पिछले दिनों राजगीर (बिहार) में एशियाई कप महिला हाकी चैम्पियनशिप में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम का हिस्सा रहीं हरिद्वार की अन्तर्राष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी श्यामपुर कांगड़ी की मनीषा चौहान, आर्ट आफ लिविंग फाउण्डेशन के उत्तराखण्ड प्रभारी, जीवन प्रशिक्षक व प्रेरकवक्ता तेजिन्दर सिंह कैंथ, भारतीय सनातन संस्कृति के प्रसारक शिवम् श्रोत्रिय, पत्रकार शशांक सिखौला, ज्योतिष विद्या विशेषज्ञ पं. पवन पंत तथा पुलिस प्रशासनिक अधिकारी जे.पी. जुआल को श्हरिद्वार गौरवश् सम्मान से सम्मानित किया गया। सभी को अंगवस्त्र, सम्मान पत्र तथा शीषपग व्यासपीठ द्वारा धारण कराए गये।
संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा मीडिया प्रभारी अरुण कुमार पाठक ने कार्यक्रम में इन सम्मानों की घोषणा करते हुए बताया कि डा. ईश्वर भारद्वाज द्वारा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि, विदेशों में भी योग को, लगभग हर स्तर पर, शैक्षणिक पाठ्यक्रम से जोड़ने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है। अपरोक्ष रूप से यह श्रीमद्भगवद्गीता के उन सभी 18 अध्यायों का ही प्रसार और विस्तार है, जिनके नाम किसी न किसी योग के साथ जोड़कर निर्धारित किये गये हैं।
उन्होंने जानकारी दी की गीता रत्न तथा हरिद्वार गौरव सम्मान दिए जाने का सिलसिला संस्था ने वर्ष 1917 से प्रारंभ किया था।
सम्मान समारोह के उपरान्त कथाव्यास आचार्य करुणेश मिश्र ने श्रीमद् भागवत सप्ताह के षष्ठम् दिवस कथाक्रम को विस्तार देते हुए विशेषरूप से गोवर्धन पूजन तथा रुक्मिणी विवाह के प्रसंगों का श्रवण कराया। इस दौरान सभी श्रद्धालुओं की भक्ति भावना तथा उमंग-उत्साह खूब धूमधाम से प्रदर्शित हुए। इसी दौरान अन्य अनेक प्रसंगों का भी संक्षिप्त श्रवण कराया। भागवत कथा गंगा में अवगाहन कराते हुए उन्होंने कहा कि, हमारा मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है यदि हम मन से स्वयं को मुक्त अनुभव करें तो हम मुक्त हैं और यदि बंधन में महसूस करते हैं तो स्वयं को बंधनों में बंधा हुआ पाते हैं। उन्होंने कहा कि, परमात्मा तो हमें नित्य निरंतर प्राप्त हैं ही और वह हमारे स्वयं के अंदर ही विराजमान हैं। हमारे ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं की जिसने भी स्वयं के अंदर परमात्मा की खोज हेतु अपने भीतर की यात्रा की है, वह परमात्मा का हो गया है और उसने भगवान को इसी जन्म में प्राप्त कर लिया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला