डाला छठ पूजा वैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक, आर्थिक आधार : अखिलेश्वर शुक्ला
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- Nov 05, 2024
जौनपुर, 05 नवम्बर (हि.स.)। बिहार के प्रमुख पर्व में शुमार डाला छठ का पर्व अब बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाने लगा है। बात करें उत्तर प्रदेश की तो बीते कई वर्षों से डाला छठ की धूम मची हुई है। जनपद जौनपुर के गोमती नदी, सही नदी आदि पर भारी संख्या में महिलाएं व्रत करती हैं और छठ माता की पूजा करती है। भारतीय ब्रत पर्व त्योहार पर जब हम सभी गम्भीरता पूर्वक चिंतन मनन अध्ययन की दृष्टि से देखते हैं तो पाते हैं कि मौसम (जाड़ा-गर्मी-वर्षा) एवं प्रकृति में ऋतुओं के साथ साथ खेत-खलिहान के अनाज-पैदावार से भारतीय पर्व-त्योहारों का बदलते मौसम के साथ गहरा रिश्ता है।
इस तरह की बातों को हम भले हीं गम्भीरता से न लें, न समझें-लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। जहां तक दार्शनिक सामाजिक आर्थिक आधार की बात की जाय तो प्रकृति प्रेम, स्वास्थ जीवन, सामाजिक सौहार्द, आर्थिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने में इन पर्व त्यौहारों की अहम भूमिका होती है। जिसे हम बहुत आसानी से, सतही तौर पर नहीं समझ सकते हैं। इसके लिए हमें शोध परक दृष्टि का अवलम्बन लेना होगा।
जहां तक छठी माता के ब्रत का विधान है, जो तीन दिन पूर्व से कुल चार दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है। पहले ऐसा कहा जाता था कि यह बिहार प्रांत में मनाया जाता है। लेकिन इसके व्यापकता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि दिल्ली सहित कुछ प्रदेशों की सरकारें अवकाश घोषित करने से लेकर घाटों की साफ सफाई, सुरक्षा एवं प्रशासनिक स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाने को मजबूर हैं। यहां तक कि पश्चिमी देशों में रह रहे भारतीय भी यथासंभव जलाशय की ब्यवस्था करके विदेशी धरती पर भी धूमधाम से डाला छठ पूजा करते देखे जा सकते हैं।
इस सम्बंध में बुधवार को हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि से बात करते हुए मूल रूप से बिहार निवासी पूर्व प्राचार्य प्रो अखिलेश्वर शुक्ला ने इसके महत्व के बारे में बताया कि चार दिवसीय यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खायअर्थात परिवार सहित स्वयं व्रती के स्वच्छता , खान-पान में संयम एवं जलाशय में घाट की सफाई एवं पूजा का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है । दूसरे दिन पंचमी तिथि को खरना अर्थात पूरे दिन व्रत रहकर सायं मीठा भात (खीर/जाऊर) खाकर अखण्ड छठी माता का व्रत उपवास प्रारम्भ हो जाता है। तीसरे दिन षष्ठी तिथि को व्रती महिलाएं-पुरुष जलाशय में खड़े होकर अस्ताचलगामी ( डुबते हुए) सूर्य को अर्घ्य देकर संतान, समृद्धि, सुख, शांति की कामना करते हैं। चौथे दिन सप्तमी तिथि को उदीयमान (प्रातः उगते सूर्य) को अर्घ्य देकर देकर घाट पर उपस्थित जनों को प्रसाद वितरित करके स्वयं पारन (अन्न ग्रहण) करते हैं।
वास्तव में चार दिवसीय इस व्रत की तैयारी हफ्ते भर पहले से शुरू हो जाती है। जहां तक इस व्रत में जिस छ्ठी माता की पूजा की जाती है वह सूर्य देव की बहन और बाबा भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी हैं। जिन्हें सृष्टि एवं प्रकृति की देवी के रूप में जाना जाता है। प्रो अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि छठ पूजा में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर प्रणाम करने की परम्परा से हमें सबक लेना चाहिए। साथ ही उगते सूर्य देव को दूध से जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।
हिन्दुस्थान समाचार / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव