शिव परिवार का धूमधाम से मना 14 वां वार्षिकोत्सव

वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।वैश्य समाज उप्र महिला संगठन मुरादाबाद इकाई के तत्वावधान में श्री राम मंदिर में शिव परिवार के वार्षिकोत्सव में संकीर्तन करतीं महिलाएं।

मुरादाबाद, 18 फरवरी (हि.स.)। श्री राम मंदिर दीनदयाल नगर में रविवार को को शिव परिवार का 14 वां वार्षिक उत्सव धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिसमें सभी भक्तों ने पूजा अर्चना के साथ कीर्तन किया। कीर्तन के बाद यज्ञ संपन्न हुआ और महाआरती हुई। विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें सभी भक्तों ने प्रेम भाव के साथ प्रसाद ग्रहण किया।

संसार सुख और दु:ख, दोनों का मिलाजुला रूप : सुनीता गुप्ता

वैश्य समाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रभारी सुनीता गुप्ता ने कहा कि संसार सुख और दुख, दोनों का मिलाजुला रूप है। कोई इसे अपने सोच से सुखदाई बनाता है तो कोई दुखदाई। देखा जाए तो दोनों स्थितियां सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। सिक्के को किसी तरह रखा जाए, उसकी कीमत नहीं घटती। इसी तरह जीवन को भी लेना चाहिए। हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों में शिव को बहुत सरल देवता के रूप में दर्शाया गया है। लोकहित के लिए समुद्र मंथन के वक्त वह खुद आगे बढ़कर विष पीते हैं।

सुनीता गुप्ता ने कहा कि जब व्यक्ति सहजता से विसंगतियों के जहर को आत्मसात करता है तो उससे भयाक्रांत नहीं होता और जब विपरीत हालात को सच में जहर मान लेता है तो वह परेशान हो जाता है। यदि कोई छल-छद्म करे, अप्रिय स्थिति उत्पन्न करे और उसे जहर की तरह पीने की स्थिति बन जाए। तब उस जहर को भगवान शंकर की तरह कंठ में ही रोक लेना चाहिए। यदि जहर हृदय में उतरा तो मन क्षुब्ध होगा, बदला लेने का भाव जागृत होगा। इसी तरह उस जहर को मस्तिष्क की तरफ भी नहीं जाने देना चाहिए। इससे भी क्रोध, क्षोभ, अवसाद ही होगा। भगवान शंकर इन्हीं कारणों से उसे कंठ में ही धारण करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/निमित /राजेश

   

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