जांजगीर: रेशमी धागों से बुने समूह की महिलाओं ने जीवन के ताने-बाने

The women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threadsThe women of the group woven the fabric of life with silk threads

कोरबा/ जांजगीर-चांपा 20 फरवरी (हि.स.)। मन में कुछ करने का ठान लो तो फिर हर असंभव सा दिखने वाला कार्य भी संभव हो जाता है। ऐसा ही करने का जज्बा दिखाया अमरीका साहू, संतोषी साहूए निशा साहू, छटबाई साहू, दुलेश्वरी साहू, चंद्रीका साहू ने। जिन्होंने करीब 08 साल पहले जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय की जनपद पंचायत पामगढ़ से 13 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत खोरसी़ में रेशम विभाग और मनरेगा के संयुक्त रूप से योजनान्तर्गत लगे साजा और अर्जुन के पेड़ों पर रेशम के कृमिपालन कर कोसाफल उत्पादन का काम शुरू किया। स्व सहायता समूह की महिलाओं जो कुछ साल पहले तक अपने खेतों में खरीफ की फसल लेने के बाद सालभर मजदूरी की तलाश में लगे रहते थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। यही वजह रही है कि आज समूह न सिर्फ कुशल कृमिपालक के तौर पर कोसाफल उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं और आज उनकी जिंदगी रेशम से रेशमी हो चली है।

समूह की महिलाओं की आगे बढ़ने की ललक ने उन्हे जिले में बेहतर स्वरोजगार की ओर मोड़ दिया। समूह ने रेशम विभाग के कोसा कृमिपालन स्वालम्बन समूह खोरसी का प्रतिनिधित्व करते हुए कृमिपालन और कोसाफल का उत्पादन व संग्रहण का कार्य कर शुरू किया। जिससे जुड़कर समूह कुशल कृमिपालक के क्षेत्र में 3 सालों में लगभग 3 लाख रुपए की अतिरिक्त आमदनी अर्जित की है। रेशम विभाग के सहायक संचालक हेमलाल साहू ने बताया कि विभागीय योजना एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ;महात्मा गांधी मनरेगा अंतर्गत 6 लाख 66 हजार की लागत से 10 हेक्टेयर में 41 हजार साजा और अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। आज ये पौधे लगभग 6 से 8 फीट के हरे.भरे पेड़ बन चुके हैं।

समूह की महिलाएं बताती हैं कि विभाग के द्वारा यहाँ टसर के कृमिपालन कर कोसाफल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है। विगत सालों में विभाग की सलाह पर यहाँ मनरेगा के श्रमिक के रुप में काम करना शुरु किया था और अपनी सीखने की ललक के दम पर धीरे.धीरे कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कियाए सालभर में वह इसमें पूरी तरह से दक्ष हो चुका था। मनरेगा श्रमिकों को अपने साथ समूह के रुप में जोड़ा और यहाँ पेड़ों का रख.रखाव के साथ कृमिपालन कर कोसाफल उत्पादन का कार्य शुरु कर दिया। इनके समूह के द्वारा उत्पादित कोसाफल को विभाग के माध्यम से शासन द्वारा निर्धारित दर पर टसर बीज उत्पादन हेतु खरीदा जाता है। इससे इन्हें सालभर में अच्छी.खासी कमाई होने लगी।

महिलाएं कुशल कृमिपालक बनने के बाद कोसाफल उत्पादन से मिली नई आजीविका से जीवन में आये बदलाव के बारे में बताते है कि आगे बढ़ने के लिए मन में खेती.किसानी के अलावा कुछ और भी करने का मन था। समूह की महिलाएं बताती हैं कि रेशम कृमिपालन के रुप में परम्परागत कृषि कार्य के अतिरिक्त आमदनी से गांव में ही रोजी.रोटी का नया साधन मिला। महात्मा गांधी नरेगा से यहाँ हुए वृक्षारोपण से फैली हरियाली ने उनकी जिंदगी में भी हरियाली ला दी है। कोसाफल उत्पादन से जुड़ने के बादए अब परिवार का भरण.पोषण अच्छे से कर पा रही हैं और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रही हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ हरीश तिवारी

   

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