भारत की राजनीति में छाए राम, राम से लोकतंत्र...राम ही 'विजय मंत्र'

- अयोध्या में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव

देहरादून, 16 अप्रैल (हि.स.)। राजनीति से राष्ट्रवाद और राम से रामराज्य तक...। अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है और देश भर में हर जगह राजनीतिक माहौल गरमा गया है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मानो रामराज्य आ गया है। भारत की राजनीति में भी प्रभु श्रीराम छाए हुए हैं।

तन-मन के साथ रोम-रोम में राम

रामनवमी से पूर्व महाष्टमी पर मंगलवार को देवभूमि पर ऐसा ही नजारा दिखा। गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत चमोली जिले के जोशीमठ में मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रोड शो निकाला। रोड शो में जय श्रीराम के जयघोष गूंज रहे थे। कुछ रामभक्त तो मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का तस्वीर भी साथ लेकर चल रहे थे। रोड शो में सभी की जुबां पर एक ही नाम था, वह था राम। तन-मन के साथ रोम-रोम में राम थे। इन सबके बीच राम से लोकतंत्र... राम ही 'विजय मंत्र' की झलक दिख रही थी।

भगवान राम सबके हैं, सबके थे और सबके रहेंगे

भारत माता मंदिर के महंत एवं निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी ललिता नंद गिरि ने कहा कि भगवान राम किसी पार्टी, दल और संप्रदाय के नहीं है। भगवान राम सबके हैं, सबके थे और सबके रहेंगे। अयोध्या का नाम आता है तो आस्था, भक्ति और संस्कृति से जुड़े शहर की कल्पना साकार हो उठती है, 'राम राज्य' की बात भी आती है। हालिया दौर की राजनीति में 'राम राज्य' की परिकल्पना राजनीति और राजनेताओं को बहुत से संदेश भी दे जाती है।

राम के उदय में सदियां लग गईं

राम कथा भारत की सबसे पुरानी कथाओं में से एक है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कब एक पौराणिक कथा से संस्कृत की मुख्यधारा में चली गई। राम के उदय में सदियां लग गईं। उन्हें संस्कृत-साहित्य से लेकर मंदिर में प्रतिस्थापित होने और जीवित राजाओं में उनकी समानता व महान देवताओं में से एक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।

राम का अर्थ- शासन

रामराज्य शासन की आदर्श संकल्पना है। एक ऐसी राज व्यवस्था जहां न कोई दुखी हो और न ही अभावों से ग्रस्त हो। जहां जन-जन भय मुक्त हो और चर्तिदक शांति हो। जहां का शासन सभी के लिए मंगलकारी हो।

मर्यादा

राम इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, क्योंकि उन्होंने हर हाल में मर्यादा की रक्षा की और स्थापित किया कि सत्यनिष्ठ, कर्मनिष्ठ और धर्मनिष्ठ आचरण ही मर्यादा है तथा उससे सभी बंधे हैं। वह हर रूप में मर्यादा के प्रतीक हैं।

नेतृत्व

सबको साथ लेकर चलने के मामले में राम अद्वितीय हैं। वनवासियों समेत समाज के सभी वंचित-शोषित वर्गों को आदर देना उनका स्वभाव है। उनमें आत्मविश्वास पैदाकर उनके सहयोग को वह अपनी शक्ति बना लेते हैं।

शौर्य

साधारण जनसमुदाय में समुद्र पार जाने का साहस जगाकर और परम पराक्रमी रावण की दिग्विजयी सेना को परास्त कर राम ने स्थापित किया कि केवल सैन्यबल शौर्य का परिचायक नहीं होता। वह अपने शौर्य के बल पर हर चुनौती पर विजय पा लेते हैं।

लोकतंत्र

राम इस सीमा तक लोकतांत्रिक हैं कि एक अवसर पर कहते हैं- यदि अनुमति हो तो कुछ कहूं और यदि मेरे कहे में कुछ अनुचित देखें तो मुझे टोक दें, मैं सुधार कर लूंगा। वह अपने राज्य में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की राय के आधार पर फैसला लेने में हिचकते नहीं।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/प्रभात

   

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