बीकानेर में एक साथ 17 भाई-बहिनों की हुई शादी, आशीर्वाद और प्रीतिभोज समारोह एक साथ

बीकानेर, 6 अप्रैल (हि.स.)। जिले के नोखा तहसील के लालमदेसर छोटा गांव में अनोखा सामूहिक विवाह हुआ है, जहां एक साथ 17 भाई-बहिनों की शादी हुई। शादी में एक दिन पहले पांच भाइयों की बारात गई और अगले दिन गांव में 300 गाड़ियों में बारह बारातें आईं। शादी में सिर्फ परिवार के लोग ही नहीं 150 परिवारों की आबादी वाला पूरा गांव जुट गया। एक अप्रैल को पांच भाइयों और दो अप्रैल को 12 बहनों की शादी हुई। आशीर्वाद समारोह और प्रीतिभोज एक साथ रखा गया। इस विवाह समारोह की खास बात यह है कि अनोखे सामूहिक विवाह के पीछे वजह है इन 17 भाई-बहनों के दादा का एक फैसला ही था।

लालमदेसर छोटा गांव में रहने वाले सुरजाराम गोदारा के पांच बेटे हैं। इनका नाम ओमप्रकाश, गोविन्द गोदारा, मानाराम, भागीरथ व भैराराम है। गांव में सूरजाराम के परिवार के 117 सदस्य रहते हैं। सभी खेती-किसानी से जुड़े हैं। पांचों बेटों का परिवार अलग-अलग घरों में रहता है लेकिन आदेश सुरजाराम गोदारा का ही चलता है। आज भी घर की जरूरतों का सारा सामान सुरजाराम ही उपलब्ध करवाते हैं। इसके अलावा परिवार के सभी बड़े आयोजनों का हिसाब भी वे खुद ही रखते हैं। सुरजाराम के परिवार के सदस्यों ने बताया कि करीब डेढ़-दो साल पहले परिवार में उनके एक पोते की सगाई हुई। कुछ दिन बाद दो पोते और तीन पोतियों की भी सगाई हो गई। इस पर विचार किया गया कि सभी बच्चे शादी के योग्य हैं तो क्यों न पहले सभी की सगाई कर दी जाए। जब सभी की सगाई हो गई तो सुरजाराम ने बेटों से कहा कि सभी का सामूहिक विवाह करेंगे। घरवालों को भी लगा कि 5 बेटों और 12 बेटियों की शादी कैसे करेंगे? 1 अप्रैल 2024 को सुरजाराम के पांच पोतों सांवरमल, राकेश, बनवारी लाल, मुन्नीराम और सुनील की शादी का मुहूर्त निकला। वहीं अगले दिन 2 अप्रैल को 12 पोतियों सरिता, द्रौपदी, संगीता, रामेली, मुन्नी, पूजा, प्रियंका, पूजा, रिशिका, अर्पिता, बसंती और उर्मिला की शादी का दिन तय हुआ। यह भी तय हुआ कि इन सभी का आशीर्वाद समारोह और शादी का खाना भी एक साथ ही रखा जाएगा। 2 अप्रैल को 12 पोतियों की बारात आनी थी। ऐसे में उनके परिवार के सदस्यों के साथ गांव के लोग जुटे और बारात की पूरी तैयारी की। बारातियों को रुकवाने के लिए गांव के ही 6 घरों में व्यवस्था की गई। एक खेत में 250 गुणा 250 का टेंट लगाया गया। इसके साथ ही 6 हजार लोगों के खाने की व्यवस्था भी की गई। इनमें बारातियों के साथ गांव वाले और मेहमान भी शामिल थे।

एक अप्रैल को बारात गई, अगले दिन 12 गांवों से आई बारात

परिवार में एक साथ 17 पोते-पोतियों की शादी को बेहतर ढंग से मैनेज किया गया। पांच भाइयों की बारात को एक साथ 1 अप्रैल को दोपहर में रवाना किया गया। हालांकि बारात अलग-अलग गांवों में गई थी, लेकिन दूरी 35 से 40 किलोमीटर ही थी। 2 अप्रैल को पांच भाइयों की शादी के बाद बारात सुबह जल्दी लौट गई थी। इसके बाद परिवार बेटियों की शादी की तैयारियों में जुट गया। 2 अप्रैल की शाम कुकणियां बेरासर, सिनियाला, दुदावास, जसरासर और झाड़ेली सहित 12 गांवों से 300 गाड़ियों में बारात पहुंची। 12 बारातों के स्वागत के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा। बारातियों के ठहरने और खाने की व्यवस्था के लिए सभी को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई।

बारात के लिए मंगवाए 800 पलंंग, दादा के घर में फेरे

विवाह समारोह में पहुंची 12 बारातों को रोकने के लिए गांव में ही बड़े-बड़े 6 घरों में व्यवस्था की गई थी। जिनघरों में बारात को ठहराया गया था, उन्हें लाइट और फूलों से सजाया गया। इसके साथ ही बारातियों के रुकने के लिए 800 पलंग मंगवाए गए थे। इन 6 घरों में 100-100 पलंग की व्यवस्था की गई बाकी 200 पलंग रिजर्व में रखे। 12 पोतियों की शादी की लिए चंवरी (मंडप) दादा सुरजाराम के घर में ही बनवाया गया था। वहीं पर 12 पोतियों के फेरे हुए।

एक साथ हुआ आशीर्वाद समारोह, एक साथ बैठे जोड़े

2 अप्रैल को ही सभी सत्रह पोते-पोतियों की शादी के बाद आशीर्वाद समारोह साथ रखा गया। इसके लिए खुले मैदान में लगे टेंट में सभी 17 जोड़ाें को एक साथ बैठाया गया। हर किसी ने इन जोड़ों को आशीर्वाद दिया। समारोह में प्रीति भोज भी रखा गया, जिसमें हजारों की संख्या में परिवार के सदस्य और परिचित उपस्थित रहे।

पिता के आदेश का पालन

सुरजाराम के पारिवारिक सदस्य मामराज गोदारा बताते हैं कि संयुक्त परिवार में आज तक सारे निर्णय सुरजाराम ही लेते हैं। ऐसे में सत्रह पोते-पोतियों का एक साथ विवाह करने का निर्णय उन्होंने लिया, जिसका सब बेटे-बेटियों ने पालन किया। आगे भी उनके ही आदेश का पालन होगा। सामूहिक परिवार के इस अनूठे प्रयास से आर्थिक लाभ हुआ। परिजनों का कहना है कि इस विवाह समारोह में दो हजार लोग एकत्र हुए। इसमें पांचों भाइयों के ससुराल सहित अन्य परिजनों को आमंत्रित किया गया। यही विवाह अगर अलग-अलग होता तो सत्रह बार आयोजन करना पड़ता। इतनी ही बार सभी को आमंत्रित भी करना पड़ता।

हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/संदीप

   

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