मुख्यमंत्री धामी ने गढ़वाल राइफल्स के गौरवशाली इतिहास को किया याद, बलिदानियों को किया नमन

-गढ़वाल राइफल्स की वीरता के हुए 137 गौरवशाली वर्ष, जिसका गीत है- 'बढ़े चलो, गढ़वालियों बढ़े चलो'

- गढ़वाल राइफल्स के जाबांज रणबाकुरों को स्थापना दिवस दी शुभकामनाएं

देहरादून, 05 मई (हि.स.)। आज का दिन उत्तराखंड के लिए वीरता और गौरवशाली इतिहास से भरा है। देवभूमि प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध नहीं बल्कि देवभूमि की माटी कई वीर गाथाओं और बलिदान के लिए भी जानी जाती है। उत्तराखंड के लिए आज का दिन पराक्रम और वीरता को याद करने का गौरवशाली दिन भी है। आज गढ़वाल राइफल्स का 137वां स्थापना दिवस धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।

इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए शुभकामनाएं दी हैं। मुख्यमंत्री ने एक्स पर लिखा- बद्री विशाल लाल की जय! अदम्य साहस एवं पराक्रम की परिचायक, मां भारती की सेवा में सदैव तत्पर ''गढ़वाल राइफल्स'' के स्थापना दिवस की समस्त प्रदेशवासियों एवं वीर जवानों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

गढ़वाल राइफल्स की स्थापना पांच मई 1887 अल्मोड़ा में हुई थी। बाद में चार नवंबर 1887 को लैंसडाैन में गढ़वाल राइफल्स की छावनी स्थापित की गई। वर्तमान में यह गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट का ट्रेनिंग सेंटर है। 1890 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हेनरी लैंसडाैन के नाम पर तत्कालीन उत्तराखंड के क्षेत्र कालुडांडा को लैंसडाैन नाम दिया गया था। वर्तमान में यह स्थान उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है।

गढ़वाल राइफल्स का है स्वर्णिम इतिहास-

गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य दल है। 1891 में दो-तीन गोरखा रेजिमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन दो-तीन क्वीन अलेक्टजेन्टास आन (बटालियन का नाम) खड़ी की गई और शेष बटालियन को दोबारा नए बंगाल इन्फेंट्री की 39वीं गढ़वाल रेजिमेंट के नाम से जाना गया। बैज से गोरखाओं की खुखरी हटाकर उसका स्थान फीनिक्स बाज को दिया गया। इसने गढ़वाल राइफल्स को अलग रेजिमेंट की पहचान दी। 1891 में फीनिक्स का स्थान माल्टीज क्रॉस ने लिया। इस पर ''द गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट'' अंकित था। बैज के ऊपर पंख फैलाए बाज थे, यह पक्षी शुभ माना जाता था। इससे गढ़वालियों की सेना में अपनी पहचान का शुभारंभ हुआ।

आज गढ़वाल राइफल्स की दो गढ़वाल से 22 गढ़वाल तक यूनिट है। जोशीमठ में स्थाई रूप से गढ़वाल स्काउट्स है। 121 इको व 127 इको बटालियन भी है। साथ ही गढ़वाल राइफल्स के 14 आरआर, 36 आरआर व 48 आरआर में अपनी सेवाएं देते हैं। दो प्रादेशिक सेना भी गढ़वाल राइफल्स के तहत हैं। लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग सेंटर है, जिसमें अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा कम्पनी में रिक्रूटमेंट होती है। वहीं, एक कंपनी के रिक्रूट कोटद्वार में भी रहते हैं। हालांकि सभी टेस्ट लैंसडाउन में ही सम्पन होते है, जिसके बाद यहीं कसम परेड होती है, तब जाकर एक रंगरूट जवान के रूप में तैयार होता है।

वीर गब्बर सिंह नेगी, दरबान सिंह, जसवंत सिंह रावत, लाट सूबेदार बलभद्र सिंह, चन्द्र सिंह गढ़वाली, अशोक चक्र विजेता भवानी दत्त जोशी आदि अनेकों वीरों ने गढ़वाल राइफल्स के मान सम्मान को अपनी वीरता शूरता से पूरी दुनिया में बढ़ाया है। नूरानांग हो या टीथवाल हो, द्रास हो या बटालिक आदि युद्ध क्षेत्रों में गढ़वाली वीरों की वीरता दशकों से जीवंत रूप में मौजूद है।

गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट युद्ध का नारा है ''ब्रदी विशाल लाल की जय''-

उत्तराखंड में स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट का युद्ध नारा है ''बद्री विशाल लाल की जय''। गढ़वालियों की युद्ध क्षमता की असल परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में हुई जब गढ़वाली ब्रिगेड ने ''न्यू शैपल'' पर बहुत विपरीत परिस्थितियों में हमला कर जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था। 10 मार्च 1915 के इस घमासान युद्ध में सिपाही गब्बर सिंह नेगी ने अकेले एक महत्वपूर्ण निर्णायक व सफल भूमिका निभाई। कई जर्मन सैनिकों को सफाया कर खुद भी वीरगति को प्राप्त हुए। उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 45 के बीच में गढ़वाल राइफल्स ने अपनी अहम भूमिका निभाई। ऐसे ही 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध, शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987-88) उसके बाद 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने अपनी वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।

तलवार चाहिए न कोई ढाल चाहिए, गढ़वालियों के खून में उबाल चाहिए-

''बढ़े चलो, गढ़वालियों बढ़े चलो'' गीत के साथ देश दुनिया को अपना पराक्रम दिखाने वाले दुनिया की सबसे बड़े सैनिक परिवार की नींव आज ही रखी गई थी। जंग में जोशीले नारे ''ब्रदी विशाल लाल की जय'' उद्घोष के साथ वीर सैनिकों में एक जोश भर जाता है। आज स्थापना दिवस पर गढ़वाल राइफल्स सेंटर के रेजिमेंटल मंदिर में पूजा अर्चना के साथ विधिवत सैनिकों द्वारा रेजिमेंट की खुशहाली के लिए पूजा की जाती है। उसके बाद सेंटर के सभी सैनिक वॉर मेमोरियल, युद्ध स्मारक में जाकर मेमोरियल में पुष्प चक्र भेंट कर शहीद सैनिक को याद किया जाता है। सेना के उच्चाधिकारियों व गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिकों द्वारा शौर्य गाथा का उद्घोष किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज

   

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