बिक्रम मजीठिया ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा:जमानत के लिए दायर की अर्जी, हाईकोर्ट ने की याचिका खारिज

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट से झटका लगने के बाद शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने अब सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है। हाईकोर्ट द्वारा नियमित जमानत याचिका खारिज किए जाने के तुरंत बाद मजीठिया ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दाखिल कर दी है। मजीठिया के वकील अर्शदीप सिंह कलेर ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जहां से उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद है। करीब 20 पन्नों के आदेश में जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने कहा कि आर्थिक अपराध सामान्य अपराधों से अलग श्रेणी में आते हैं। इनमें गहरी साजिश और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की आशंका होती है, इसलिए ऐसे मामलों में जमानत देते समय अदालतों को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए। हाईकोर्ट ने की याचिका खारिज इससे पहले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार मामले में मजीठिया की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा कि जांच के दौरान सामने आए वित्तीय लेनदेन, कंपनियों का जटिल जाल और विदेशी स्रोतों से आई संदिग्ध रकम गंभीर आर्थिक अपराधों की ओर इशारा करती है। कोर्ट ने जांच एजेंसी को निर्देश दिए कि तीन माह के भीतर समग्र जांच पूरी की जाए। साथ ही यह भी कहा कि यदि तय समय में जांच पूरी नहीं होती है, तो याची नई जमानत याचिका दायर कर सकता है। विजिलेंस की एफआईआर और आरोप मजीठिया के खिलाफ 25 जून को विजिलेंस ब्यूरो मोहाली ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत एफआईआर दर्ज की थी। यह एफआईआर 2021 के एनडीपीएस मामले की जांच के दौरान गठित एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई थी। रिपोर्ट में मजीठिया और उनकी पत्नी के पास कथित तौर पर 540 करोड़ रुपए से अधिक की संदिग्ध संपत्ति होने का उल्लेख किया गया था। एफआईआर और राज्य सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि 2007 में विधायक और बाद में मंत्री बनने के बाद मजीठिया और उनके परिवार से जुड़ी कंपनियों, खासकर सराया इंडस्ट्रीज लिमिटेड में अचानक बड़ी मात्रा में नकदी जमा होने लगी। गवाहों को प्रभावित करने की आशंका हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मजीठिया की राजनीतिक हैसियत और प्रभाव को देखते हुए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं या जांच को बाधित कर सकते हैं। इसी आधार पर अदालत ने नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया। वहीं मजीठिया की ओर से यह दलील दी गई थी कि यह मामला केवल एनडीपीएस केस के पुराने आरोपों को दोहराने जैसा है और यह सरकार की राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि एनडीपीएस मामले की जांच के दौरान सामने आए नए तथ्यों और बड़ी साजिश के संकेतों के आधार पर दूसरी एफआईआर दर्ज करना कानूनन सही है।

   

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