सुप्रीम कोर्ट का चंडीगढ़ प्रशासन से सवाल:अवैध फेरीवालों की तस्वीरें, ऑनलाइन अपलोड करने की अनुमति है या नहीं, हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती

चंडीगढ़ में बिना लाइसेंस फेरी लगाने वालों पर कार्रवाई का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। मनीमाजरा व्यापार मंडल और कल्याण संघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन से साफ-साफ पूछा है कि क्या शहर में ऐसा कोई ऑनलाइन सिस्टम है, जहां लोग बिना लाइसेंस फेरी लगाने वालों की फोटो अपलोड करके शिकायत कर सकें। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि उन्हें अगली सुनवाई में सिस्टम की उपलब्धता और उसकी प्रभावशीलता पर साफ जवाब चाहिए। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को चंडीगढ़ नगर निगम कमिश्नर द्वारा दाखिल हलफनामे पर अपना जवाब देने की भी अनुमति दी है। हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती मनीमाजरा व्यापार मंडल के अध्यक्ष मलकीत सिंह और मनीमाजरा निवासी कल्याण संघ ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें चंडीगढ़ में स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका संरक्षण एवं स्ट्रीट वेडिंग विनियमन) एक्ट, 2014 के तहत हो रही कार्यवाही को सही ठहराया गया था। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि शहर में सर्वे और वेडिंग योजना लागू होने के बावजूद कई लोग बिना लाइसेंस और बिना तय जगह के खुलेआम सड़क किनारे दुकानें लगाकर व्यापार कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे लाइसेंस लेकर काम करने वाले अधिकृत विक्रेताओं को गलत तरह की प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है और फुटपाथों व मुख्य बाजारों में भारी भीड़भाड़ बन रही है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह भी बताया गया कि सिविल अस्पताल, स्कूल और बस स्टैंड तक जाने वाले रास्तों पर भी बिना अनुमति फेरी लगाने वालों की वजह से अक्सर जाम लग जाता है और पूरा इलाका अव्यवस्थित रहता है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने इन भीड़भाड़ और गड़बड़ी से जुड़े महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जिस क्षेत्र में वे वेडिंग कर रहे हैं, वह अधिसूचित वेडिंग जोन नहीं है, फिर भी हाईकोर्ट ने उन पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया और व्यक्तिगत टिप्पणियां कीं, जिससे सार्वजनिक रूप से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा। शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने कई बार शिकायत की, लेकिन इसके बावजूद न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही बिना लाइसेंस फेरी लगाने वालों को हटाया गया। उनका आरोप है कि प्रशासन की इस लापरवाही से 2014 के एक्ट के तहत बनाई गई पूरी व्यवस्था कमजोर पड़ रही है और लाइसेंस लेकर काम करने वाले वैध वेंडरों की कमाई पर सीधा असर पड़ रहा है।

   

सम्बंधित खबर