डीयू के हिंदू अध्ययन केंद्र में 15 दिवसीय पांडुलिपि अध्ययन कार्यशाला का आयोजन

-पांडुलिपि एवं शास्त्र अध्ययन से यूरोसेंट्रिक मानसिकता का अंत : डॉ प्रेरणा मल्होत्रा

नई दिल्ली, 04 मार्च (हि.स.)। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू अध्ययन केन्द्र में मंगलवार को हिंदू अध्ययन केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय एवं तत्वम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में तथा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरंभ वाग्देवी, वाग्धारा, वागमाता सरस्वती के पूजन और गणेश वंदना से किया गया। कार्यशाला में डीयू के कला संकाय की डीन प्रो. अमिताव चक्रवर्ती मुख्य अतिथि एवं राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक प्रो. अनिर्बान दास विशिष्ट अतिथि और डीयू के अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष अंजना शर्मा उपस्थित रहे। साथ ही कार्यक्रम में हिन्दू अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो.ओमनाथ बिमली एवं सह निदेशक व कार्यक्रम संयोजिका डॉ प्रेरणा मल्होत्रा अथवा तत्वम फाउंडेशन के गणेश तिवारी आदि विभूतियां उपस्थित रहीं।

डॉ प्रेरणा मल्होत्रा ने बताया कि भारत में विश्व की सर्वाधिक पांडुलिपियां आज भी विद्यमान हैं। एक अनुमान के अनुसार आज के समय में 10 मीलियन से अधिक पांडुलिपियां उपलब्ध हैं और लगभग एक करोड़ भारतीय पांडुलिपियां दुनिया भर में फैली पड़ी हैं, जिनको लाना और फिर उसका गूढ़वाचन करना फिर डिजिटलाइज करना है। यह भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती है और इसको करना भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए अत्यंत आवश्यक है। हमें यूरोसेंट्रिक मानसिकता का त्याग करके अपनी दृष्टि के आधार पर जगत का अनुकरण करना चाहिए। हम सबको लिपियों का अध्ययन करते रहना चाहिए जिससे संस्कृतिक एवं धर्मिक धरोहर को बचाकर रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला भारतीय संस्कृति को सभी के समक्ष स्थापित करने के लिए प्रथम कदम है।

प्रो. ओम नाथ बिमली ने अपने वक्तव्य में छात्रों की चिति को जागृत करते हुए भारत भूमि में जन्म पाकर इस जन्म को सार्थक करने के लिए सभी को प्रेरित किया। उन्होंने पांडुलिपि के अध्ययन की उपयोगिता पर बल देते हुए बताया कि कैसे वाचस्पति मिश्र के लिखे ग्रन्थ ब्रह्म तत्व समीक्षा की प्रासंगिकता आज के समय में बहुत अधिक है। इससे मिलने वाले लाभ भारतीय ज्ञान परम्परा के लिए बहुत आवश्यक है, इसलिए भारतीय ज्ञान परम्परा के लिए आवश्यक है कि हम विभिन्न लिपि सीखते हुए पांडुलिपि संरक्षण करें। विरासत एवं विकास के विषय में उन्होंने बताया कि समाज में अर्जित किए हुए का परित्याग किए बिना हमें आगे बढ़ना चाहिए।

प्रो. अंजना शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें कुछ नया सीखते रहना चाहिए। हमारे विषय में किसी स्थापित विषय द्वारा व्याख्या न करके अपितु हमारी वास्तविक परिभाषा के माध्यम से हमें अपना परिचय देना चाहिए। विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञानार्जन के विषय में सभी को प्रेरित करते हुए उन्होंने बताया कि पता नहीं कौन सी चाभी किस ताले को खोल दे, इसलिए हमें ज्ञान की महत्ता को समझना चाहिए।

प्रो. अनिर्बान दास ने एनएमएम के कार्य को विस्तार से बताया कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन कैसे पांडुलिपि के संरक्षण के लिए कार्यरत है और कैसे इसकी सहायता से शोधार्थी लाभान्वित हो सकते हैं और कैसे यह उनके लिए आर्थिक रूप से सहायक हो सकता है। उन्होंने सभी विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वह सभी आएं और पांडुलिपि की लिपियों का अध्ययन करें तथा पांडुलिपियों को बचाने में योगदान करें।

प्रो. अमिताभ चक्रवर्ती ने छात्रों को पांडुलिपियों के अध्ययन और समझ में संलग्न होने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि यह विकसित भारत की प्राप्ति के मिशन में योगदान दे सकता है। उन्होंने छात्रों को पांडुलिपियों के प्रति जागरूकता को जमीनी स्तर पर फैलाने के लिए भी प्रेरित किया, यह बताते हुए कि ये भारत की अमूल्य धरोहर हैं। पांडुलिपियों के अध्ययन के प्रति जुनून विकसित करना युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है, जिससे भारतीय ज्ञान का पुनर्जागरण हो सके।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

   

सम्बंधित खबर