काशी ‘लर्निंग’, ‘अर्निंग’ और ‘बर्निंग’ सिटी : डॉ. सुमेध थेरो

—बीएचयू में ‘काशी वैभव : एक ऐतिहासिक विमर्श’ विषयक तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में स्मारिका का विमोचन

वाराणसी,08 नवम्बर (हि.स.)। काशी हिंदू विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के तत्वावधान में शुक्रवार से ‘काशी वैभव : एक ऐतिहासिक विमर्श’ विषयक तीन दिवसीय संगोष्ठी का आगाज हुआ। परिसर स्थित वैदिक विज्ञान केंद्र सभागार में आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि श्रीलंका इंटरनेशनल बुद्धिस्ट एसोसिएशन, सारनाथ के अध्यक्ष डॉ.के. सिरी सुमेध थेरो ने काशी के पुरातन महिमा का जिक्र किया। डॉ थेरो ने काशी और महात्मा बुद्ध के ऐतिहासिक संबंधों को भी बताया। उन्होंने काशी को ‘लर्निंग’, ‘अर्निंग’ और ‘बर्निंग’ सिटी कहा, जो समय और संदर्भ के अनुसार अनवरत विद्यमान रही है।

डॉ. थेरो ने यह भी उल्लेख किया कि भविष्य में अगला बुद्ध (बोधिसत्व) काशी में ही जन्म लेंगे। और उस समय काशी का नाम ‘केतुमति’ होगा। उन्होंने काशी को एक शाश्वत नगरी बताते हुए कहा कि इसकी महत्ता को कम करके नहीं देखा जा सकता। संगोष्ठी में प्रो. मारुति नंदन तिवारी ने कहा कि काशी केवल एक नगर नहीं, बल्कि एक अनंत भाव है। यह शिव की नगरी है, जहां शिव की उपस्थिति हर ओर महसूस की जा सकती है। शिव लोक देवता और विशिष्ट देवता दोनों हैं। उन्होंने आधुनिक समाज में बढ़ती एकाकी संस्कृति और दिखावे की प्रवृत्ति पर चिंता जताई। संगोष्ठी में इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. घनश्याम ने अतिथियों का स्वागत कर विभाग के उपलब्धियों और विकास यात्रा को बताया। सामाजिक विज्ञान संकाय की डीन डॉ. बिंदा परांजपे ने काशी के विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से बताया। गोष्ठी में एक स्मारिका का विमोचन किया गया। जिसमें 150 से अधिक शोधार्थियों व विद्वानों के शोध-सारांश सम्मिलित हैं। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सत्यपाल यादव और डॉ. सीमा मिश्रा ने बताया कि दूसरे दिन देश-विदेश से आए शोधार्थी काशी से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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