हिमाचल प्रदेश में भूकंप का खतरा बढ़ा, पूरा प्रदेश अब उच्चतम भूकंप जोन-6 में शामिल
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- Dec 03, 2025
शिमला, 03 दिसंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में भूकंप का खतरा बढ़ गया है। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने भूकंप खतरे का नेशनल मैप जारी करते हुए हिमाचल प्रदेश को एक बड़े बदलाव के साथ पूरी तरह से नई निर्मित उच्चतम भूकंपीय श्रेणी जोन-6 में शामिल किया है।
बीआईएस के इस कदम को हिमाचल के जोखिम आकलन, आपदा प्रबंधन और निर्माण मानकों को सीधे प्रभावित करने वाला माना जा रहा है। इससे पहले के मानचित्र में प्रदेश को दो हिस्सों में बांटा गया था। इनमें कांगड़ा, चंबा, हमीरपुर, मंडी, कुल्लू और किन्नौर के कुछ हिस्सों को ज़ोन-5 यानी सर्वाधिक जोखिम क्षेत्र में रखा गया था, जबकि शिमला, सोलन, सिरमौर, बिलासपुर, ऊना और लाहौल-स्पीति सहित किन्नौर के कुछ हिस्सों को ज़ोन-4 में रखा गया था, जिसे उच्च जोखिम वाला लेकिन ज़ोन-5 से कम संवेदनशील माना जाता था। नए मानचित्र ने यह पूरा विभाजन समाप्त करते हुए पूरे राज्य को समान रूप से सर्वाधिक जोखिम वाली श्रेणी में शामिल कर दिया है, जिससे ज़ोन-5 और ज़ोन-4 का पुराना भेद अब वैज्ञानिक और कानूनी रूप से अप्रासंगिक हो गया है।
बीआईएस के नए मानचित्र को 2025 भूकंप डिजाइन कोड के तहत संभाव्य भूकंपीय जोखिम आकलन जैसी उन्नत वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर तैयार किया गया है और यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ढांचे के लिए एक आधिकारिक आधार दस्तावेज की तरह काम करेगा। हालांकि यह मानचित्र तुरंत भवन निर्माण या नियोजन नियमों में कोई बदलाव लागू नहीं करता, लेकिन अब राज्य सरकार, जिला प्रशासन और तकनीकी विभागों को आपदा प्रबंधन अधिनियम, भवन संहिताओं और भूमि उपयोग कानूनों के तहत नई जोखिम श्रेणी को अपनाते हुए अपने नियमों को बनाना होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार यह बदलाव हिमाचल में सरकारी योजनाओं, भवन डिजाइन, पुल और सड़कों की संरचनात्मक सुरक्षा, सार्वजनिक अवसंरचना ऑडिट, भू-स्खलन और चट्टान धंसने जैसे जोखिमों के संयोजन पर आधारित नियोजन को मजबूती देगा और भविष्य के विकास कार्यों में सुरक्षा मानकों को अधिक कठोर बनाना आवश्यक होगा। प्रदेश के लिए यह कदम इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि हिमाचल भूकंप के इतिहास के लिहाज से पहले से ही अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है और हिमालयी भू-पट्टी भू-वैज्ञानिक रूप से सक्रिय मानी जाती है।
नए मानचित्र के आधार पर अब जिला आपदा प्रबंधन योजनाएं, भवन अनुमति प्रक्रियाएँ, खतरा-जोखिम-भेद्यता विश्लेषण, माइक्रोज़ोनेशन अध्ययन और संवेदनशील क्षेत्रों की भू-वैज्ञानिक रिपोर्टें तैयार करते समय उच्चतम खतरे वाली श्रेणी को मानक आधार माना जाएगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह निर्णय वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप सही समय पर लिया गया है क्योंकि पिछले कई वर्षों से हिमाचल में लगातार कम तीव्रता वाले भूकंप महसूस किए जा रहे हैं, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3 के आसपास रहती है और चंबा जिला सबसे ज्यादा बार झटकों का केंद्र रहा है। प्रदेश का भूकंपीय इतिहास बेहद दर्दनाक रहा है। वर्ष 1905 में कांगड़ा और आसपास के क्षेत्रों में आए विनाशकारी भूकंप में 10 हजार से अधिक लोग मारे गए थे, जिसने हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को दुनिया के सामने रखा था।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा



