महाकुम्भ में मुक्त विश्वविद्यालय अपनी भूमिका का निर्वाह करे : राज्यपाल 

- मुक्त विवि युवाओं के सर्वांगीण विकास को समर्पित : जेपी नड्डा

- राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय का 27वां स्थापना दिवस समारोह

प्रयागराज, 05 नवम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के 27वें स्थापना दिवस समारोह को वीडियो संदेश के माध्यम से सम्बोधित करते हुए कुलाधिपति एवं उप्र की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि शिक्षा सभी नागरिकों का मूलभूत अधिकार है। किसी भी देश के विकास का पैमाना वहां के लोगों के शैक्षिक होने की दर है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो संस्कारित हो और देश प्रेम के सद्गुणों को विकसित करे। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ में मुक्त विवि को अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।

मंगलवार को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि उप्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा रूपी प्रकाश की रश्मि से जीवन को प्रकाशमान करने का कार्य कर रहा है। अभी हमने दीपावली का पर्व मनाया है। सभी जगह प्रकाश फैलाकर अंधकार को दूर किया है। उसी प्रकार हमें शिक्षा का प्रकाश फैला कर अशिक्षा बेरोजगारी एवं अज्ञान का अंधकार मिटाना है।

इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, भारत सरकार जगत प्रकाश नड्डा ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि शिक्षा में तकनीक, प्रौद्योगिकी और भारतीय ज्ञान परम्परा के समागम की परिणति राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पाठ्यक्रम के जरिए उप्र राजर्षि टंडन मुक्त विवि युवाओं के सर्वांगीण विकास को समर्पित है। हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार और उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के जरिए अमृत काल में देश का युवा विकसित भारत का निर्माण कर सकता है।

तिलक सभागार में स्थापना दिवस समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री डॉ नरेन्द्र कुमार सिंह गौर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में मुक्त विश्वविद्यालय सिर्फ योजनाओं का निर्माण ही नहीं कर रहा है, बल्कि नई शिक्षा नीति के अनुरुप योजनाओं एवं शिक्षण प्रक्रिया का क्रियान्वयन भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा आवश्यक है। वर्तमान समय में रोजगार परक एवं कौशल विकास के पाठ्यक्रमों के जरिए जन जन तक उच्च शिक्षा का प्रचार प्रसार आवश्यक है।

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि हमें अपनी सांस्कृतिक एवं भाषाई विरासत पर गर्व करना चाहिए। उच्च शिक्षा की विसंगतियों को दूर करने के लिए वर्तमान में दूरस्थ शिक्षा एक सजग माध्यम है। उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक तथ्यों के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परम्परा के बारे में शिक्षकों को अपने छात्रों को जानकारी देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अकादमिक जगत और साहित्य में राष्ट्र, समाज और देश के प्रति दायित्व बोध आवश्यक है।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि दूर शिक्षा विशिष्ट प्रकार की शिक्षा पद्धति है, जो वर्तमान में सर्वाधिक प्रासंगिक है। विश्वविद्यालय का निर्माण इमारतों से नहीं बल्कि शिक्षकों एवं छात्रों से होता है। एक ओर जहां भारतीय ज्ञान परम्परा स्थानीय भाषाओं और संस्कृति से जुड़़े पाठ्यक्रमों का संचालन हो रहा है, वहीं तकनीक स्वास्थ पोषण और विज्ञान के क्षेत्र में भी छात्रों को नवीन जानकारियां देने के लिए विश्वविद्यालय प्रतिबद्ध है। संचालन डॉ स्मिता अग्रवाल तथा कुलगीत निकेत सिंह ने प्रस्तुत किया। वाचिक स्वागत प्रोफेसर पी के पांडेय तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने किया।

तकनीकी सत्र में स्थापना दिवस का प्रथम व्याख्यान मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एम पी दुबे ने दिया। उन्होंने कहा कि दूरस्थ शिक्षा नयापन एवं विविधताओं का मार्ग प्रशस्त करती है। नई शिक्षा नीति की व्यवस्थाओं के अनुरूप मूक्स, कृतिम मेधा और तकनीक का ज्ञान दूरस्थ शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए अति आवश्यक है। विद्यार्थियों में संज्ञानात्मक ज्ञान, वैज्ञानिकता, रचनात्मकता, जीवन जीने की कला, वर्तमान चुनौतियों से निपट कर एक उज्ज्वल भविष्य के सपने को साकार करने में दूरस्थ शिक्षा सक्षम है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

   

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