जूनोटिक संक्रमण के जोखिमों को कम करने के लिए शुरू होगा वैज्ञानिक अध्ययन
- Admin Admin
- Apr 04, 2025

नई दिल्ली, 4 अप्रैल (हि.स.)। पशुओं से मानव में होने वाली बीमारियां यानि जूनोटिक संक्रमण के जोखिमों को कम करने के लिए एक अग्रणी अंतर-मंत्रालयी वैज्ञानिक अध्ययन शुरू होने जा रहा है। इस
व्यापक शोध का उद्देश्य पक्षी अभयारण्य के कर्मचारियों और आस-पास के निवासियों में जूनोटिक रोगों का पता लगाना है। इसके साथ उनका निदान करने के लिए वास्तविक समय निगरानी मॉडल विकसित करना है।
शुक्रवार को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के मुख्यालय में “वन हेल्थ दृष्टिकोण का उपयोग करके पक्षी-मानव संपर्क से जूनोटिक संक्रमण का पता लगाने के लिए एक निगरानी मॉडल का निर्माण-स्टडी एट सिलेक्टिड बर्ड सेंचुरिज एंड वेटलैंड्स” शीर्षक से अध्ययन शुरू करने की घोषणा की गई। यह अनूठा अध्ययन सिक्किम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में चुनिंदा पक्षी अभयारण्यों और आर्द्रभूमि में किया जाएगा।
इस अवसर पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कहा कि जिस तरह समय पर और सटीक कार्रवाई के लिए एक मजबूत रडार प्रणाली आवश्यक है, उसी तरह उभरते स्वास्थ्य खतरों का शीघ्र पता लगाने और रोकथाम के लिए मजबूत निगरानी प्रणाली महत्वपूर्ण है। इस निगरानी 'रडार' को मजबूत करने के लिए अनुसंधान को आगे बढ़ाने में वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। नेशनल वन हेल्थ मिशन (एनओएचएम) सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों का अनुमान लगाने और उन्हें कम करने के लिए विश्व के अत्याधुनिक विज्ञान का लाभ उठाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के निदेशक डॉ. रंजन दास ने कहा कि जूनोटिक स्पिलओवर के लिए जिम्मेदार तंत्र और चालकों को समझना जरूरी है, ताकि समय पर और समन्वित कार्रवाई की जा सके। एनसीडीसी इस महत्वपूर्ण पहल का स्वागत करता है, जो जूनोटिक खतरों का पता लगाने, उन्हें रोकने और उनका निराकरण करने की हमारी राष्ट्रीय रणनीति के अनुरूप है। मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर निगरानी को मजबूत करने से भविष्य में होने वाले प्रकोपों के लिए भारत की तैयारी में काफी सुधार होगा।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी