हिसार : मशरूम को स्वरोजगार के रूप में अपनाकर आय में करें बढ़ोतरी :अशोक गोदारा

एचएयू में मशरूम उत्पादन तकनीक पर व्यावसायिक प्रशिक्षण सम्पन्न

वैज्ञानिकों ने मशरूम के उत्पादन, बिक्री व रोगों की रोकथाम बारे दी जानकारी

हिसार, 5 नवंबर (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सह निदेशक डॉ. अशोक कुमार गोदारा ने कहा है कि मशरूम उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे भूमिहीन, शिक्षित या अशिक्षित, युवक व युवतियां कम से कम खर्च मे इसे स्व-रोजगार के रूप मे अपनाकर आय मे बढ़ोतरी कर सकते हैं। इस संस्थान में मशरूम उत्पादन के अलावा मधु-मक्खी पालन, केंचुआ खाद उत्पादन, और्गेनिक फ़ार्मिंग, बीज उत्पादन, डेयरी फ़ार्मिंग, फल एवं सब्जी प्रशिक्षण, दूध व दूध से बने उत्पाद, बेकरी, स्प्रे तकनीक, खाद्य पदार्थों का मूल्य संवर्धन, नर्सरी रेजिंग, बाग लगाने आदि विभिन्न विषयों पर पूरे वर्ष प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं।

डॉ. अशोक गोदारा मंगलवार को संस्थान की ओर से मशरूम उत्पादन तकनीक पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण के समापन अवसर पर प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। इस प्रशिक्षण में हरियाणा, राजस्थान व पंजाब राज्य के विभिन्न 16 जिलों से प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया।डॉ. गोदारा ने बताया कि मशरूम में कई तरह के औषधीय गुण भी होते हैं। इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद है। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा भी किसानों तथा बेरोजगार युवाओं को इसे एक व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्रशिक्षण के आयोजक डॉ. सतीश कुमार मेहता ने बताया कि हरियाणा मे ज़्यादातर किसान सर्दी के मौसम मे सफ़ेद बटन खुम्ब की काश्त करते हैं और इसके पश्चात फार्म को बंद कर दिया जाता है जबकि बटन मशरूम के बाद ढींगरि व दूधिया मशरूम का उत्पादन भी किया जा सकता है।

डॉ. राकेश चुघ ने ढींगरी और कीड़ा जड़ी मशरूम को उगाने कि विधि के बारे मे बताया तथा डॉ अमोघवर्षा ने शिटाके मशरूम की उत्पादन तकनीक पर व्याख्यान दिया। डॉ. संदीप भाकर ने बताया कि सफ़ेद बटन खुम्ब उगाने पर लगभग 50 रुपये प्रति किलो लागत आती है और बाजार मे लगभग 100 रुपये प्रति किलो इसका भाव मिल जाता है। सूत्रकृमि विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल वत्स ने खुम्ब उत्पादन में सूत्रकृमियों की रोकथाम तथा डॉ. भूपेन्द्र सिंह ने खुम्ब में नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों के प्रबंधन रसायनों के प्रयोग कि बजाए दूसरे सुरक्षित तरीकों पर प्रशिक्षणार्थियों को अवगत कराया। डॉ. पवित्रा मौर्य पूनिया ने बताया कि खुम्ब में मुख्यत: गीला बुलबुला व सूखा बुलबुला रोग का प्रकोप देखा जाता है तथा इनके प्रबंधन के लिए फफूंदनाशियों के प्रयोग की बजाए खुम्ब भवन में साफ सफाई का ध्यान रखें।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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