विवाह पंचमी पर राम नगरी में भव्य तरीके से निकलेगी श्रीराम बारात, मनेगा विवाहोत्सव
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- Dec 05, 2024
दशरथ महल में राम विवाहोत्सव की धूम श्रीराम कथा की सुधा वृष्टि और रामलीला का हों रहा मंचन
भक्त परमात्मा को पालने में झूला सकता है : जगद्गुरु रामदिनेशाचार्य
अयोध्या, 5 दिसंबर (हि.स.)। रामनगरी अयोध्या में श्रीराम विवाहोत्सव का रंग चटख हो गया है। रामनगरी के मंदिरों में राम विवाहोत्सव की परंपरा पूरे भव्यता के साथ निभाई जाती है। शुक्रवार 6 दिसम्बर को विवाह पंचमी के अवसर पर दशरथ महल से भव्य तरीके से श्रीराम बारात निकलेगी, नगर भ्रमण और विवाहोत्सव मनेगा। कनक भवन, श्री राम बल्लभा कुंज, रंग महल, जानकी महल, लक्ष्मण किला, हनुमत निवास सहित प्रमुख मंदिरों से श्री राम बारात निकलेगी। रामनगरी के दशरथ महल के साथ समूची अयोध्या राम विवाहोत्सव के उल्लास में डूब गई है। अधिकाशं मठ-मंदिरों में मंगल गीत गूंज रहे हैं, राम नगरी में विवाहोत्सव का उत्साह झलक रहा है।
दशरथ महल, बड़ा स्थान में श्रीराम विवाहोत्सव में बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य की अध्यक्षता में संचालित श्रीराम कथा में गुरुवार को कथा व्यास जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशचार्य के द्वारा श्री राम कथा के मनोहारी प्रसंगों को सुनाया गया।
कथा व्यास जगद गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री राम दिनेशाचार्य जी महाराज के श्री मुख से हो रही श्री राम कथा की मंदाकिनी में गोते लगा रहे भक्तों को कथा रसपान कराते हुए स्वामी जी कहते है,संपूर्ण ब्रह्मांड को अपनी माया से नाचने, झुलाने वाले परमात्मा को मैय्या कौशल्या श्रृंगार कर पालने में झूला रही हैं। परमात्मा को भक्त के पराभूत होकर पालने में झूला झुला रही है। भगवान का नाम करण होता है,व्यास जी कहते है जिसके स्वास से वेद निकलते है वे प्रभु गुरु के चरणों में बैठ कर विद्याध्यन कर रहे है यही कारण है भगवान के अवतार लेने का। सभी को शिक्षा देते है। भगवान श्री राम धनुष धारण करते है इसलिए यहां आतंकवादी नहीं आ सकते।
व्यास जी कहते है रामायण मंत्र है। तुलसी दास जी कहते है 'प्रात: काल उठकर रघुनाथा मात पिता गुरु नावे माथा' उद्धत चरित्र की स्थापना करने के लिए भगवान अवतार धारण करते हैं। विश्वामित्र का अर्थ है जो विश्व का मित्र है। इस राष्ट्र में यदि धर्म पर विपत्ति आती है तो उसकी चिंता कोई संत ही करता है, संत का संकल्प दूसरे के लिए होता है अपने लिए कोई संकल्प नहीं होता है। साकार व्यक्ति ही निराकार की बात करता है जो अज्ञ्यानी है वह भगवान का भजन नहीं करते, अहंकारी,घमंडी भी भगवान का भजन नहीं करते,पुरुषार्थी भी भगवान का भजन नहीं करते और जिसे भगवान से अच्छा कोई मिल जाय वह भी भजन नहीं करते। विश्वा मित्र जी से बड़ा पुरुषार्थी कोई और नहीं हो सकता। भगवान की कृपा प्राप्त करने का एक मार्ग है दीन बनना पड़ेगा।
हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय