लोकसभा चुनाव : राधेश्याम विरूद्ध मेनका सिंह, आम आदमी राजमहल पर भारी

रायगढ़ , 28 अप्रैल (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ लोकसभा सीट पर आगामी 7 मई को मतदान होना है। रायगढ़ सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। ऐसा पहली बार हुआ है जब रायगढ़ लोकसभा से जशपुर की बजाय रायगढ़ को प्रतिनिधित्व का मौका दिया है। भाजपा ने राधेश्याम राठिया को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस ने सारंगढ़ राज परिवार की मेनका सिंह को उम्मीदार बनाया है।

रायगढ़ भाजपा का गढ़

छत्तीसगढ़ गठन के बाद से ही रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में भाजपा लगातार जीत का झंडा लहराते आ रही है। इसलिए रायगढ़ लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है। इसके पूर्व वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (20 वर्ष) और विधायक गोमती साय (5 वर्ष) पिछले 25 वर्षों से रायगढ़ संसदीय सीट पर काबिज़ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को इस सीट से जीत हासिल करना कड़ी चुनौती है।

प्रचार प्रसार में कमी

एक तरफ भाजपा प्रत्याशी राधेश्याम राठिया की नामांकन रैली से लेकर प्रचार प्रसार में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से लेकर वित्त मंत्री और विधायक ओपी चौधरी सहित कई शीर्ष नेताओं ने उनके पक्ष में मोर्चा संभाला, वहीं दूसरी ओर मेनका सिंह के नामांकन रैली में खरसिया विधायक उमेश पटेल सहित रायगढ़ के कांग्रेसी नेता मौजूद रहे, बावजूद इसके उनके पक्ष में प्रचार-प्रसार में कमी देखी जा रही है। राधेश्याम राठिया प्रतिदिन आम लोगों से मुलाकात कर सघन दौरा कर रहे हैं, तो वहीं मेनका सिंह सारंगढ़ तक ही सीमित नज़र आ रही हैं।

भीतरघात की संभावना

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस में भीतरघात कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बनी थी। ठीक उसी प्रकार मेनका सिंह को टिकट दिए जाने से कई कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी की बातें भी सामने आई हैं। जानकारी के मुताबिक कुछ कांग्रेसियों का यह भी आरोप हैं कि पार्टी में उनके विचार और सलाह की पूछ परख नहीं रह गई है। साथ ही मेनका सिंह कुछ सीमित लोगों तक ही सिमट कर कार्य कर रही हैं। ऐसे में इस नाराजगी का खामियाजा एक बार फिर कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है।

आम जनता के बीच पकड़

राधेश्याम राठिया पिछले 33 वर्षों से भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं। पूर्व में जनपद अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य के अलावा भाजपा मंडल अध्यक्ष व प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहे हैं, लिहाजा उनकी पकड़ आम लोगों के बीच बनी हुई है। दूसरी ओर मेनका सिंह भी लंबे समय से कांग्रेस में बनी हुई हैं, लेकिन राजपरिवार से संबंधित होने के कारण उनका आम लोगों के बीच मेल-मुलाकात कम रहा है, ऐसे में आम जनता ना तो उन्हे अच्छे तरीके से जानती है, ना ही पहचानती है। यह दूरी उनके विरोध का भी एक कारण बनी है।

सारंगढ़ में भी विरोध

मिली जानकारी के मुताबिक मेनका सिंह रायगढ़ से अधिक सारंगढ़ का परिचित चेहरा हैं, बावजूद इसके सारंगढ़ में ही उनके लिए विरोध के स्वर फूटने लगे है। मेनका सिंह को टिकट मिलने के बाद अंदर ही अंदर पार्टी के कार्यकर्ताओं में गुस्सा देखा गया था। कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर महल परिवार से प्रत्याशी देने पर कई लोग मायूस भी हुए। सारंगढ़ राजमहल को लेकर स्थानीय लोगों में भी काफी नाराजगी देखने को मिली थी, इतना ही नहीं राजपरिवार के खिलाफ सारंगढ़ में कई बार स्थानीय जनता और संगठनों ने प्रदर्शन किया है। जिसका नुकसान कांग्रेस को लोकसभा में हो सकता है।

आदिवासी होने पर सवाल

कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने भी रायगढ़ में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए मेनका सिंह के आदिवासी होने पर सवाल उठाए थे, हालांकि मेनका सिंह की ओर से इस सवाल का खण्डन करते हुए कहा गया था कि वह मूलतः आदिवासी परिवार की बेटी हैं।

बहरहाल मेनका सिंह के सामने बीजेपी के अनुभवी नेता राधेश्याम राठिया हैं। जिन्हें चुनाव में हराने के लिए कांग्रेस को एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा। 7 मई को मतदान है जिसके लिए केवल कुछ ही दिन बाकी हैं, ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी मेनका सिंह राजपरिवार से निकलकर आम जनता के बीच भरोसा जीत पाएंगी यह तो चुनाव परिणाम के दिन ही साबित हो पाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार / रघुवीर प्रधान / गेवेन्द्र

   

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