प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर 16 बार हुए लोकसभा के चुनाव में नौ बार रहा है कांग्रेस का कब्जा

मतदान प्रक्रिया खत्म होने के बाद चुनाव परिणाम आने की लोग कर रहे हैं प्रतीक्षा

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर सात बार रहा है कालाकांकर रियासत का कब्जा

प्रतापगढ़, 26 मई (हि. स)। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर 25 में को मतदान प्रक्रिया खत्म होने के बाद लोगों में चुनाव परिणाम आने को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। चारों तरफ चुनाव परिणाम की चर्चा पर चर्चा हो रही है। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के संगम लाल गुप्ता और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार शिवपाल सिंह पटेल के बीच आमने-सामने का मुकाबला है। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर मुकाबले काफी दिलचस्प है। अब तक प्रतापगढ़ लोकसभा सीट के लिए 16 बार चुनाव हुआ है जिसमें से 9 बार कांग्रेस पार्टी का कब जा रहा है, वहीं प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर राजघराने का पूरी तरह से नियंत्रण रहा है 16 में से 11 बार राजघराने का कोई न कोई सदस्य प्रतापगढ़ लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता रहा है। 2024 के सदस्य उम्मीदवार नहीं हुआ है।प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई है, इससे पहले इस इलाके का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था। यहां 16 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीतने में सफल रहे।आजादी के बाद 1957 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे।

प्रतापगढ़ की सियासत राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।राजघरानों से यदि सीट बाहर गई तो ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय का ही कब्जा रहा। यहां की राजनीति में सिर्फ दो बार गैर सवर्ण यहां से सांसद बन सका प्रतापगढ़ सीट पर अब तक हुए 16 चुनावों में 11 बार राजघरानों का ही कब्जा रहा और सबसे ज्यादा सांसद ठाकुर समाज से हुए हैं, लेकिन पहली बार है जब न कोई राज परिवार से चुनाव लड़ रहा और न ही कोई ठाकुर समाज से मैदान में है। इस तरह से प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर पहली बार ‘किंग’ किंग मेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं।

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई है, इससे पहले इस इलाके का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था। प्रतापगढ़ सीट बनने के बाद से अभी तक 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है, जबकि एक बार सपा और दो बार भाजपा जीती है।इसके अलावा अपना दल, जनसंघ और जनता दल ने एक-एक बार जीत हासिल की है। इस तरह प्रतापगढ़ सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन मोदी लहर में यह सीट पहले अपना दल (एस) के खाते में गई और बीजेपी का कब्जा है।

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर सात बार रहा है कालाकांकर रियासत का कब्जा

प्रतापगढ़ सीट पर 16 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीतने में सफल रहे थे. इससे यहां की सियासत में राजघरानों-रियासतों की भूमिका को समझा जा सकता है. कालाकांकर राजघराने के राजा दिनेश सिंह चार बार सांसद बने, जबकि उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद चुनी गईं।प्रतापगढ़ राजघराने के अजीत प्रताप सिंह दो बार और उनके बेटे अभय प्रताप सिंह एक बार लोकसभा चुनाव जीते।अजीत प्रताप सिंह पहली बार जनसंघ के टिकट पर जीते और उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर, जबकि अभय प्रताप सिंह ने 1991 में जनता दल से जीत हासिल की थी।जामो रियासत से जुड़े अक्षय प्रताप सिंह को प्रतापगढ़ सीट से एक बार ही जीत मिली।

सई नदी के बीच प्रतापगढ़ का सियासी मिजाज बदल गया। दलित, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता बहुल वाली प्रतापगढ़ सीट की राजनीति सियासी प्रयोगों और बदलावों के दौर से गुजर रही है। पहली बार है कि प्रतापगढ़ सीट पर न ही कोई राजा चुनावी मैदान में उतरा है और न ही ठाकुर समुदाय से कोई प्रत्याशी है। बीजेपी ने 2019 में संगम लाल गुप्ता को उतारकर प्रतापगढ़ सीट पर ठाकुर और राजा घराने के वर्चस्व को तोड़ने में कामयाब रही थी। तेली समुदाय से आने वाले संगम लाल गुप्ता 2019 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राज कुमारी रत्ना सिंह और जनसत्ता दल के अक्षय प्रताप सिंह के मात देने में कामयाब रहे थे।

बीजेपी ने एक बार फिर से संगम लाल गुप्ता को उतारा है, जिनके खिलाफ सपा ने एसपी सिंह पटेल और बसपा से प्रथमेश मिश्रा मैदान में है। एसपी सिंह पटेल की कोशिश कुर्मी, यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक के सहारे जीत दर्ज करने की है, तो संगम लाल गुप्ता पूरी तरह से मोदी-योगी के सहारे अपनी जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं। बसपा के उतरे प्रथमेश मिश्रा ब्राह्मण और दलित समीकरण के सहारे अपनी जीत की आस लगाए हुए हैं। संगम लाल गुप्ता के बयान से बदले प्रतापगढ़ के सियासी समीकरण में ठाकुर वोटर निर्णायक भूमिका में नजर आ रहे हैं।

प्रतापगढ़ के सियासत की धुरी राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी, कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह और राज कुमारी रत्ना सिंहमानी जाती हैं। इसके अलावा राम सिंह और डॉ. एसके पटेल जैसे कुर्मी विधायक भी अपनी एक अलग सियासी अहमियत रखते हैं।अनुप्रिया पटेल का कुर्मियों के बीच दबदबा रहा है, लेकिन डॉ. एसपी सिंह पटेल के उतरने के बाद कुर्मी समुदाय उनके पीछे लामबंद नजर आ रहा है। प्रमोद तिवारी प्रतापगढ़ में ब्राह्मण चेहरे माने जाते हैं, तो राजा भैया से लेकर रत्ना सिंह और मोती सिंह की ठाकुर समुदाय के बीच पकड़ मानी जाती है।प्रमोद तिवारी का रामपुर खास विधानसभा सीट पर एकछत्र राज है, जहां ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और दलित तक उनके साथ खड़ा नजर आता है। इसके अलावा प्रतापगढ़ सदर, विश्वनाथ गंज और रानीगंज के ब्राह्मणों में भी ठीक-ठाक पहचान है। कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन होने से प्रमोद तिवारी पूरी मशक्कत के साथ एसपी सिंह पटेल को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 4 जून को परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि जनता ने अपना किस पर भरोसा जताया है।

हिन्दुस्थान समाचार/ दीपेन्द्र/सियाराम

   

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