चुनाव के मौके पर मुख्यमंत्री बदलना भाजपा को पड़ा भारी

मनोहर सरकार के कामों को जनता तक नहीं पहुंचा पाए

कांग्रेस की जीत से विधानसभा में मिली बड़ी चुनौती

चंडीगढ़, 5 जून (हि.स.)। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री बदलना भारी पड़ गया। नए मुख्यमंत्री के पास पुराने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों को लेकर विस्तृत जानकारी नहीं थी, दूसरा जब तक वह कार्यभार संभाल पाते तब तक आचार संहिता लागू हो गई।

चुनाव परिणाम नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को वर्ष 2019 के चुनाव में रोहतक व सोनीपत लोकसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा था।जिससे उनकी अपने गढ़ में पकड़ कमजोर हो रही थी। इस चुनाव परिणाम के बाद हुड्डा ने न केवल अपनी हार का बदला लिया है बल्कि हाईकमान के दरबार में भी उनकी पकड़ मजबूत हुई है। कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की है तो चार सीटों पर कांग्रेस तथा एक सीट पर इंडिया गठबंधन प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे हैं। हुड्डा ने प्रदेश की नौ सीटों में से आठ सीटों पर अपनी पसंद के प्रत्याशियों को उतारा था। जिसमें से चार जीतकर लोकसभा में पहुंच गए हैं। कांग्रेस जहां इस चुनाव परिणाम को विधानसभा के लिए भुनाएगी वहीं हुड्डा गुट अब हाईकमान पर विधानसभा चुनाव के लिए फ्री हैंड देने के लिए दबाव बनाएगा।

भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी दस सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी दस सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा गया था लेकिन पांच सीटों पर भाजपा को जीत मिली है जबकि पांच सीटों पर भाजपा प्रत्याशी नंबर दो पर आए हैं।

भाजपा की इस हार के पीछे राजनीतिक विशेषज्ञ कई कारण मानते हैं। भाजपा को चुनाव के मौके पर सीएम को बदलने का ज्यादा लाभ नहीं मिला है। भाजपा के मुख्यमंत्री बदलते ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। जिसके चलते नए मुख्यमंत्री को फील्ड में उतरने का मौका नहीं मिला। दूसरा नए मुख्यमंत्री के पास पुराने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुए कार्यों की तथ्यात्मक जानकारियां नहीं थी। जिसके चलते कांग्रेस ने घेराबंदी को मजबूत किया।

दूसरा भाजपा लाख प्रयासों के बावजूद ग्रामीण मतदाताओं, पंचायत प्रतिनिधियो की नाराजगी को दूर नहीं कर पाई। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल तथा मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सैनी की बैठकों के बावजूद प्रदेश भर के सरपंच दोफाड़ होकर भाजपा का विरोध करते रहे। शहरी क्षेत्रों में प्रापर्टी आईडी की खामियां सबसे बड़ा मुद्दा रही। चुनाव के दिनों में भी लोग इसे ठीक करवाने के लिए भागते रहे लेकिन दफ्तरों में कोई सुनवाई नहीं हुई। शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण प्रापर्टी आईडी, अवैध कालोनियों को नियमित करने की अधिसूचना जारी न होना, निकाय तथा हशविपा में सुनवाई नहीं होना मुख्य कारण रहा है। इस सब के अलावा बड़ा कारण मनोहर सरकार की अफसरशाही पर पकड़ ढीली होना है। चुनाव के दिनों में कई-कई दिनों तक पोर्टल बंद होने, चौथी मंजिल के मकानों को लेकर जानबूझ कर पत्र जारी करके शहरियों में भ्रम पैदा करना भी मुख्य कारण रहा है। संगठन के दृष्टिकोण से भाजपा नेताओं में तालमेल का भारी अभाव, कांग्रेस की तरह बहुत से नेताओं का प्रदेश नेतृत्व से उलट चलकर काम करना ही इन चुनावों में भाजपा की हार का कारण बना है।

हिन्दुस्थान समाचार/संजीव/सुनील

   

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