भिवानी: गांव गुजरानी में कैपरी, कच्छे पहनकर घूमने पर लगाया प्रतिबंध

-सभ्यता व संस्कृति बचाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी बताया

-महिला सरपंच प्रतिनिधि ने मौजिज ग्रामीणों के साथ बैठक कर लिया फैसला

भिवानी, 26 जून (हि.स.)। कुछ दिन पहले राजनीतिक उथल-पुथल के चलते चर्चाओं में आया भिवानी जिला इस बार एक गांव में अजीबो-गरीब फैसले से चर्चा में आया है। जिला के गांव गुजरानी में पंचायत प्रतिनिधि की अध्यक्षता में मौजिज ग्रामीणों ने फैसला लिया है कि गांव में अब कोई युवा कैपरी, निक्कर या कच्चा पहनकर घर से बाहर नहीं घूमेगा। इस फैसले को गांव की महिलाएं, बुजुर्ग को सही मान रहे हैं, लेकिन युवा इससे सहमत नहीं हैं। वे इसे रुढि़वादी सोच बता रहे हैं।

बुधवार को गांव की महिला सरपंच प्रतिनिधि रेनू के प्रतिनिधि उनके ससुर सुरेश कुमार के नेतृत्व में गांव के मौजिज लोगों की बैठक हुई। यह अहम फैसला लेते हुए गांव में चौकीदार के माध्यम से मुनादी कराकर इस फैसले की जानकारी ग्रामीणों को दी। सरपंच प्रतिनिधि सुरेश कुमार ने इस फैसले के पीछे के कारण भी बताए गए हैं। उनका कहना है कि गांव के युवा अक्सर कुओं पर पानी भरती महिलाओं के आसपास, बाजारों में, दुकानों में कैपरी, निक्कर पहनकर जाते हैं। इससे महिलाओं को शर्मिंदगी महसूस होती है। यह हमारी सभ्यता और संस्कृति के भी खिलाफ है। यह फैसला को रुढि़वादी सोच नहीं, बल्कि आज के समय के लिए जरूरी है। हमारी युवा पीढ़ी अच्छे संस्कार सीखे, यह जरूरी है।

यह कानून नहीं, एक परम्परा बनाने का प्रयास

सरपंच प्रतिनिधि सुरेश कुमार ने कहा कि मौजिज ग्रामीणों से सलाह-मशविरा करके ही यह निर्णय लिया गया है। इस निर्णय को लागू करते हुए चौकीदार के माध्यम से पूरे गांव में मुनादी भी करवा दी गई है। ग्रामीणों का सहयोग मिल रहा है। धीरे-धीरे सभी इस बात से इत्तेफाक रखेंगे कि यह निर्णय सही है। यह निर्णय किसी एक व्यक्ति या घर के हिसाब से नहीं, बल्कि पूरे गांव की बहु-बेटियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। उन्होंने कहा कि हमें अपने आप में झांकना पड़ेगा। निक्कर, कैपरी पहनकर युवा अपनी अदब भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पंचायत ने यह कोई कानून नहीं बनाया है। एक परम्परा को बनाने की कोशिश की है। सभी का इसमें साथ चाहिए। निक्कर या कैपरी कोई पहनने का वस्त्र नहीं है। यह एक तरह से अंग प्रदर्शन का जरिया है। हमें रिश्तों में मर्यादा बनाए रखने के लिए ऐसे फैसलों का स्वागत और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने बुजुर्गों की सोच और पुरानी परम्पराओं का कायम रखने में आगे आना चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार/ईश्वर/संजीव

   

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