जैसे जल से बुदबुदा उठता और खत्म हो जाता है, ऐसे ही संसार है || यह संसार तुम्हारे चित्त की कलना है: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

जैसे जल से बुदबुदा उठता और खत्म हो जाता है, ऐसे ही संसार है || यह संसार तुम्हारे चित्त की कलना है: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

 

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सतवारी, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से दूर दूर से आई हजारों की संख्या में संगत को निहाल करते हुए कहा कि जैसे जल से बुदबुदा उठता और खत्म हो जाता है, ऐसे ही संसार है। यह संसार तुम्हारे चित्त की कलना है। यह हुआ ही नहीं है। यही पाश्चात्य दार्शनिक गेटे ने भी कहा। बोला कि दुनिया नहीं हुई है। यह मेरा सृजन है। 

मनुष्य जन्म लेता है। डाक्टर लोग सूक्ष्म रूप से देख लेते हैं कि बालक है। कितने सूक्ष्म रूप में थे आप। साहिब यहाँ एक बात बोल रहे हैं कि संसार मन से हुआ है। जगत है ही मन से। शरीर पूरा मन है। तन ही मन है, इंद्री मन है। मनुष्य इंद्री स्वाद के लिए भटक रहा है। जगत की अनुभूति कर्म ज्ञान इंद्रियों से होती है। चित्त ही बता रहा है कि यह माँ है, यह बाप है, यह शत्रु है, यह मित्र है। 

सदियों से हमारे पूर्वज एक मान्यता को मान रहे थे कि सूर्यदेव अपने रथ सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। न्यूटन की थ्यूरी में तो सिद्ध किया कि पृथ्वी घूम रही है, सूर्य अपनी जगह पर है। पर अब वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि सूर्य भी अपने परिवार के साथ घूम रहा है। अभी वैज्ञानिक बोल रहे हैं कि आकाशगंगा में कई सृष्टियाँ हैं। इस तरह हम सदियों से परमात्मा के लिए जो मान्यता मान रहे थे, साहिब ने उसे नकारा नहीं, पर उससे आगे अद्भुत आत्मा के देश अमर लोक का रहस्य दिया। सत्य पुरुष की सत्य भक्ति का संदेश दिया।

 

साहिब जी ने कहा कि जो किसी को कुमार्ग से हटाकर सही राह पर लाता है, वो साहिब को प्यारा लगता है। जो किसी एक जीव को सत्य भक्ति की तरफ लाता है, वो करोड़ों गायों के दान के बराबर का फल पाता है। किसी को भक्ति की धारा में जोड़ना बहुत बड़ी बात है। 

साहिब जी ने कहा कि नामी लोग अपने अन्दर के बदलाव को देखकर जान सकते हैं कि उनके साथ कोई शक्ति काम कर रही है। उस ताकत ने आपको कौवे से बदलकर हंस समान कर दिया है। नाम लेकर क्या अंतर पड़ा। आप पहले भी जी रहे थे। पहले भी चल रहे थे। पहले भी काम कर रहे थे। जैसे एक अंधकार में चल रहा है और एक रौशनी में। यह अंतर है। पहले आप उचित अनुचित जानकर भी अनुकरण नहीं कर पा रहे थे। अब आप सत्य राह पर चल पा रहे हैं। यह अंतर पड़ा। आपको कुछ भी कहीं से आहुत नहीं करना है। सब आपमें भरा पड़ा है। 

सुख दुख तो संसार में हैं ही। जैसे समुद्री तूफान बड़े बड़े जहाजों को पलट देता है। लेकिन जो पनडुब्बी है, उनको नहीं पलट पाता है। अब हमारे देश का विज्ञान देखो, कितना पड़ा है। ये पनडुब्बियाँ तो बाद में बनी हैं। लेकिन हमारे संतों ने पहले उल्लेख किया। जिनके हृदय में प्रभु है, वो कोई काम करे या न करे, कोई फर्क नहीं पड़ता। जहाँ सूर्य का प्रकाश है, वहाँ दीपक जले या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता। जिनको जल के अन्दर नाव मिल गयी, वो तर जायेगा। जल के अन्दर यानी पनडुब्बी। जिसके पास में पारस है, उसके पास धन संचय है या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता है। वो धनी है। साहिब ऐसे नहीं कह रहे हैं कि इस घट के भीतर सब कुछ भरा पड़ा है। रिद्धियाँ, सिद्धियाँ सब इसमें हैं। आप सोचें कि अत्यंत सूक्ष्म शुक्राणु, जिसे इन आँखों से भी नहीं देखा जा सकता। वो सब संसार को देख रहा है। उसमें सब कुछ भरा पड़ा है। इसको बोलते हैं बिंदु में सिंधु समाया हुआ है। आपको कुछ आहुत नहीं करना है। समस्त ब्रह्माण्ड इसी शरीर में है। हीरे, मोती, सूर्य, चाँद, तारे सब इसी में है। विज्ञान अत्यात्म का छोटा सा बच्चा है। आज खनिज पदार्थों का ज्ञान लिया जा रहा है। पहले नहीं था क्या। भारत प्राचनीनतम देश है। परमात्म सत्ता का ज्ञान भी भारत से सबसे पहले संसार को दिया। 

इसी में ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी है। इसी में करतार भी है। इसी में तीन लोक है। साहिब कह रहे हैं कि इसी में गुरु भी है। पर कोई जाननहारा ही जान सकता है। वही जान सकता है, जिसपर सद्गुरु की कृपा हो जाए। 

सबकुछ हमने सीखा है। खाना भी सिखाया गया, पढ़ना भी सिखाया गया, चलना भी सिखाया गया। सबकुछ तो सिखाया गया। पर इंसान अपने अस्तित्व को नहीं जान सका। आत्मा को जाने बिना कोई ज्ञानी नहीं है। वो आत्मा आप हो।

   

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