नटरंग ने प्रस्तुत किया ‘स्वच्छ भारत का सपना’, शहरवासियों को दी स्वच्छता की प्रेरक सीख

नटरंग ने प्रस्तुत किया ‘स्वच्छ भारत का सपना’, शहरवासियों को दी स्वच्छता की प्रेरक सीख


जम्मू, 2 दिसंबर । जम्मू नगर निगम की ‘वॉल ऑफ शेम’ पहल के तहत नटरंग ने अभिविनव थिएटर परिसर के बाहर ‘स्वच्छ भारत का सपना’ नामक एक प्रभावशाली नाटक प्रस्तुत किया। नीरज कांत के निर्देशन में तैयार यह स्ट्रीट प्ले नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता जगाने और अव्यवस्थित कचरा निस्तारण के दुष्परिणामों को उजागर करने के उद्देश्य से किया गया।

नाटक की कथा स्वच्छता, जिम्मेदार कचरा प्रबंधन तथा रीड्यूस, रियूज़ और रीसायकल के सिद्धांतों के महत्व पर आधारित है। आरंभ में व्यस्त सड़क पर लोग बेपरवाही से कचरा फेंकते दिखते हैं। पप्पू केले का छिलका सड़क पर फेंक देता है, जिस पर एक बुजुर्ग उसे समझाते हैं कि सड़क सभी की है, लेकिन वह उनकी बात अनसुनी कर देता है। मनोज आता है, छिलके पर फिसलते–फिसलते बचता है और फिर उसे डस्टबिन में डालकर लोगों की आदतों पर सवाल उठाता है। कथावाचक इस व्यवहार को खतरनाक और गैर–जिम्मेदार बताते हुए जागरूकता का संदेश देता है।

दूसरे दृश्य में पप्पू गंदे डिस्पोज़ेबल प्लेट्स जमीन पर फेंक देता है। बुजुर्ग और मनोज उसे गंदगी और बीमारियों के खतरे समझाते हैं। पास खड़ा एक बच्चा कचरे की बदबू से खांसने लगता है, जिससे पप्पू अपनी गलतियों पर विचार करने लगता है। कुछ दिनों बाद उसका व्यवहार बदलता है और डस्टबिन न मिलने पर वह कचरे को अपनी थैली में रख लेता है और गंदगी फैलाने से बचता है। सभी उसके इस सकारात्मक बदलाव की सराहना करते हैं।

नाटक आगे बढ़ता है और शहर के दूसरे हिस्से में प्लास्टिक कचरे के ढेर दिखाए जाते हैं। मोहन प्लास्टिक की बोतल सड़क पर फेंक देता है। तभी मदर अर्थ (धरती माता) दुखी मन से प्रकट होती हैं। साथ ही प्लास्टिक मॉन्स्टर आता है, जो गर्व से बताता है कि मनुष्य ही उसे बनाते हैं और फिर उसी की वजह से परेशान होते हैं क्योंकि वह कभी नष्ट नहीं होता। इस बीच सुमन अपने कपड़े के थैले और रीयूज़ेबल बोतल के साथ मोहन को प्लास्टिक कम करने के तरीकों से अवगत कराता है। वह बताता है कि किस तरह पुरानी बोतलों का पुनः उपयोग और शेष कचरे का सही रीसायकल किया जा सकता है।

जैसे–जैसे लोग ये बातें समझने लगते हैं, प्लास्टिक मॉन्स्टर अपनी शक्ति खोने लगता है। सभी पात्र मिलकर रीड्यूस, रियूज़ और रीसायकल अपनाने की सामूहिक प्रतिज्ञा करते हैं। दर्शकों को नीले डस्टबिन में सूखा कचरा, हरे डस्टबिन में गीला कचरा डालने, रसोई के कचरे से खाद बनाने और अपने घर–आसपास तथा पूरे देश को स्वच्छ रखने का आग्रह किया जाता है। नाटक इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि स्वच्छ भारत तभी संभव है जब हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे और स्वच्छता को जीवनशैली का हिस्सा बनाए।

   

सम्बंधित खबर