रांची 2 दिसंबर (हि.स.)। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित गीता सप्ताह के दूसरे दिन मंगलवार को मुख्य वक्ता के रूप में कोल इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ सिविल इंजीनियर दिव्यसानु पांडेय ने विचार प्रकट किया।
कार्यक्रम में उन्होंयने कहा कि भगवद्गीता की उपयोगिता पर कहा कि गीता मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति को स्वास्थ्य प्रदान करने वाला ग्रन्थ है।
पांडेय ने कहा कि गीता मानव जीवन की हर समस्या का समाधान है। हर प्राणी को ज्ञान होना चाहिए कि सब कुछ ब्रह्ममय है, यही गीता का मुख्य ध्येय है। उपनिषद् और वेद को अलग करके देखना उचित नहीं है इनमें कोई भेद नहीं इसका ज्ञान बेहद जरूरी है। गीता के उपदेश को अपने दैनन्दिन जीवन में उपयोग ही गीता जयंती की सार्थकता होगी।
समय को भी भारतीय संस्कृति में कहा गया है भगवान स्वरूप
उन्होंने कहा कि अप्राप्ति की प्राप्ति ही योग है और उसकी रक्षा ही क्षेम है। इसीलिए कहा भी गया यज्ञ दान और तप मनीषियों के लिए पावन है और पावन मनीषी का सान्निध्य प्राप्त करने वाला भी पवित्र हो जाता है। एक मात्र भारतीय संस्कृति में समय को भी भगवान का स्वरूप कहा गया है। इसका प्रमाण भी भगवद्गीता में ही प्राप्त होता है।
ज्ञान से कर्मफल का त्याग और त्याग से मिलती है शान्ति विश्वविद्यालय के कुलसचिव सह संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ धनञ्जय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि भगवद्गीता एक आदर्श भारतीय ग्रंथ है, जो मानव जीवन को एक नूतन दिशा और दृष्टिकोण देता है। इसके उपदेशों से मानव जीवन में कई परिवर्तन आते हैं। भगवद्गीता के उपदेशों से मानव को आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। आत्म-ज्ञान से मानव अपने वास्तविक स्वरूप को समझता है और अपने जीवन के उद्देश्य को जानता है।
भगवद्गीता के उपदेशों से मानव को धर्म की समझ आती है। धर्म से मानव अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझता है और अपने जीवन को धर्म के अनुसार चलाता है। भगवद्गीता के उपदेशों से मानव को कर्म की समझ आती है। कर्म से मानव अपने कार्यों को समझता है और अपने जीवन को कर्म के अनुसार चलाता है।
कार्यक्रम में गौरव कुमार मिश्र और सर्वोत्तमा कुमारी की ओर से प्रस्तुत अच्युतम् केशवम भजन ने सबको भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रतिमा चौहान ने किया।
इस अवसर पर विभागीय प्राध्यापिका डॉ श्रीमित्रा, कुमारी जया, मनीषा बोदरा सहित कई लोग उपस्थित थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pathak



