शिक्षक नियुक्त किए नहीं और पद समाप्त कर दिए : हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद्

मंडी, 06 जून (हि.स.)। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग द्वारा शून्य नामांकन के आधार पर विभिन्न विद्यालयों में विषयाध्यापक पदों को समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इस निर्णय में 47 विद्यालयों को शामिल किया गया, जिनमें से केवल 19 विद्यालयों में शिक्षक होते हुए भी छात्रों की नामांकन संख्या शून्य थी। शेष 28 विद्यालयों में संबंधित विषयों के शिक्षक नियुक्त ही नहीं किए गए थे।

हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल, प्रदेश महासचिव डॉ अमित शर्मा, वित्तसचिव सोहनलाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ सुशील शर्मा, उपाध्यक्ष डॉ जंगछुब नेगी, रजनीश कुमार, राकेश कुमार, शांता कुमार, महिला संयोजिका अर्चना शर्मा, हमीरपुर के अध्यक्ष नरेश मलोटिया, सोलन के डॉ कमलकांत गौतम, कांगड़ा के डॉ अमनदीप शर्मा, ऊना के बलवीर चन्द, मण्डी के लोकपाल, सिरमौर के अध्यक्ष वेद पराशर, शिमला के अध्यक्ष संजय शर्मा, बिलासपुर के राजेन्द्र शर्मा, कुल्लू के हेमलाल, चम्बा के अमर सेन, लाहौल के सुरेश बोध, एवं किन्नौर के अध्यक्ष फुन्चोक नेगी ने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि यह स्पष्ट है जिन विद्यालयों में शिक्षक नहीं थे, वहां छात्रों का नामांकन न होना स्वाभाविक है। ऐसे में, इन विद्यालयों में पद समाप्त करना छात्रों के साथ अन्याय है, क्योंकि उन्हें विषय पढ़ने का अवसर ही नहीं मिला। विशेष रूप से, संस्कृत विषय के संदर्भ में, सरकार ने सात विद्यालयों में प्रवक्ता संस्कृत के पद समाप्त कर दिए, जबकि वहां शिक्षक नियुक्त ही नहीं थे।

उन्होंने कहा कि हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् का मानना है कि यह निर्णय विषय और छात्रों दोनों के साथ अन्यायपूर्ण है। संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए आवश्यक है कि विद्यालयों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। यह भी उल्लेखनीय है कि जब इन विद्यालयों में शिक्षक नियुक्त थे, तब छात्रों का नामांकन भी था। शिक्षकों के स्थानांतरण या पद रिक्त होने के बाद ही नामांकन में गिरावट आई है। परिषद् ने सरकार से आग्रह किया है कि अभी प्रवक्ता वर्ग पर पदोन्नति भी होनी है अतः पदोन्नति से पद भरे जायें न कि समाप्त किए जाएं। जहां शिक्षक होते हुए छात्रों की नामांकन संख्या शून्य है, वहां पदों की समाप्ति पर विचार किया जा सकता है। जहां शिक्षक नियुक्त नहीं हैं, वहां पहले योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। शिक्षकों की नियुक्ति के बाद भी यदि नामांकन शून्य रहता है, तब पद समाप्ति पर विचार किया जाए। इस प्रकार का संतुलित और न्यायपूर्ण निर्णय ही छात्रों के हित में होगा और शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा

   

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