फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या में आती हैं कमी: मृदा वैज्ञानिक

कानपुर, 02 दिसंबर (हि. स.)।उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में कम्पनी बाग स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की तरफ से संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर ने ग्राम कपूरपुर में मंगलवार को फसल अवशेष प्रबंधन पर ब्लॉक स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की और उन्हें इसके उचित प्रबंधन के लिए प्रेरित किया।

मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या कम हो जाती है। इसके साथ ही, मिट्टी के पोषक तत्व घटते हैं, मिट्टी कठोर हो जाती है, और उसकी जल धारण क्षमता में कमी आती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीवांश पदार्थ की मात्रा घटने से मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होने लगती है, जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

डॉ खान ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे फसल अवशेषों को खेत में ही डीकंपोजर की सहायता से सड़ाएं।

वैज्ञानिक डॉ शशिकांत ने हैप्पी सीडर, मल्चर, रोटावेटर, सुपर सीडर और स्मार्ट सीडर जैसे कृषि यंत्रों का उपयोग कर फसल अवशेष प्रबंधन करने पर जोर दिया। उन्होंने किसानों से अपने-अपने गांवों में फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में अन्य किसानों को जागरूक करने का भी आग्रह किया।

गृह वैज्ञानिक डॉ निमिषा अवस्थी ने प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डालतें हुए कहा कि फसल अवशेषों का उपयोग सब्जियों की खेती और फलों के बगीचों में पलवार (मल्चिंग) के रूप में करने से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है, पानी की बचत होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।

इस मौके पर मनोज कुमार, ओम प्रकाश, जगरूप तिवारी, सुशीला देवी, मुन्नी व मंजू देवी सहित कई किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

हिन्दुस्थान समाचार / मो0 महमूद

   

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