1971 छंब विस्थापित परिवारों को ‘नो मैन्स लैंड’ दावे से नई परेशानी

1971 चंब विस्थापित परिवारों को ‘नो मैन्स लैंड’ दावे से नई परेशानी


जम्मू, 23 दिसंबर ।

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान छंब सेक्टर से विस्थापित हुए सैकड़ों परिवार एक बार फिर अनिश्चितता और मानसिक पीड़ा का सामना कर रहे हैं। उन्हें बताया गया है कि जिस भूमि पर वे दशकों से खेती करते आ रहे हैं, वह अब अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) के पास तथाकथित “नो मैन्स लैंड” में आती है।

प्रभावित परिवार मूल रूप से छंब के चकला, बरसाला, गोगी, करनी, चक पंडिता और आसपास के गांवों के निवासी थे। 1971 के संघर्ष के बाद इन परिवारों को पहले माजलता के राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया और बाद में मरह, बेलियासमथ और लल्याला क्षेत्रों में पुनर्वास किया गया, जिनमें लल्याला कैंप और कनालचक कैंप शामिल हैं।

निवासियों के अनुसार वर्ष 1976 में तत्कालीन शेख मोहम्मद अब्दुल्ला सरकार के कार्यकाल के दौरान उन्हें विधिवत भूमि आवंटित की गई थी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय सीमा के संरेखण में बदलाव के कारण उनके लिए निर्धारित भूमि आईबी के दूसरी ओर चली गई। इसके परिणामस्वरूप 1973 और 1976 में अन्य परिवारों को वैकल्पिक भूमि आवंटित कर दी गई, जबकि छंब के विस्थापित परिवार असमंजस की स्थिति में रह गए। यह बात पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता सुखनंदन कुमार ने मंगलवार को जम्मू स्थित भाजपा मुख्यालय में मीडिया से बातचीत के दौरान कही।

इस भ्रम के बावजूद ये परिवार पिछले 30 वर्षों से वर्तमान भूमि पर खेती कर रहे हैं और वर्ष 1992 में उन्हें इंतकाल (म्यूटेशन) भी जारी किया गया था जिससे उनका यह विश्वास और मजबूत हुआ कि यह भूमि कानूनी रूप से उन्हीं की है।

सीमा पर बाड़बंदी कार्य के दौरान यह संकट हाल ही में फिर उभर कर सामने आया जब प्रभावित निवासियों को अधिकारियों ने बताया कि वे जिस भूमि पर खेती कर रहे हैं, वह “नो मैन्स लैंड” में आती है और उनका मूल आवंटन अंतरराष्ट्रीय सीमा के दूसरी ओर है—जो अब न तो सुलभ है और न ही उपयोग योग्य।

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