अजमेर दरगाह ब्लास्ट में अपीलों पर मेरिट के आधार पर करे हाईकोर्ट फैसला-एससी

जयपुर, 20 दिसंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2007 में अजमेर दरगाह में हुए बम ब्लास्ट मामले को हाईकोर्ट भेजते हुए कहा है कि वह पीड़ितों की ओर से अपील पेश करने में हुई देरी को नजरअंदाज कर मामले के गुण-दोष यानी मेरिट के आधार पर निर्णय करे। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चन्द्र शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश अजमेर दरगाह के खादिम और मामले के शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

मामले के अनुसार 11 अक्टूबर, 2007 को रमजान के दौरान अजमेर दरगाह परिसर में बम धमाका हुआ था। इसमें तीन लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे। मामले में एनआईए ने जांच कर विशेष अदालत में आरोप पत्र पेश किया था। जिस पर विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने साल 2017 में भावेश पटेल और देवेन्द्र गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और लोकेश शर्मा, चन्द्रशेखर लेवे, मुकेश वासानी, हर्षद, नभ कुमार सरकार उर्फ असीमानंद, मेहुल और भरत मोहन रतेश्वर को बरी कर दिया था। शिकायतकर्ता सरवर चिश्ती ने आरोपियों को बरी करने और दो अभियुक्तों को दी सजा की मात्रा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने साल 2022 में इन अपीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अपील दायर करने में 90 दिन से अधिक की देरी हुई है और एनआईए एक्ट के तहत इस देरी को माफ नहीं किया जा सकता। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी।

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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक