(वार्षिकी) नेपाल के लिए अशांति और विद्रोह की आग में झुलसा रहा साल 2005

काठमांडू, 31 दिसंबर (हि.स.)। साल 2025 नेपाल के लिए गहरे संकट और परिवर्तन का वर्ष बनकर उभरा, जिसमें व्यापक राजनीतिक अशांति, सामाजिक लामबंदी और राष्ट्रीय सहनशक्ति की बार-बार परीक्षा देखने को मिली। वर्ष की शुरुआत से ही शासन में विफलताओं, आर्थिक दबाव, श्रमिक असंतोष और बढ़ती जलवायु-जनित आपदाओं के कारण देश पर दबाव बढ़ता गया।

नेपाल ने हाल के दशकों की सबसे गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल का सामना किया, जब देश-भर में मुख्यतः जेनरेशन-जी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन भड़क उठे। महीनों के साथ ये तनाव लगातार तीव्र होते गए और अंततः ऐतिहासिक, युवाओं के नेतृत्व वाले आंदोलनों में बदल गए, जिन्होंने नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य को ही बदल दिया। प्राकृतिक आपदाओं और नागरिक आंदोलनों के साथ-साथ गहराते राजनीतिक विभाजन के बीच 2025 को एक निर्णायक वर्ष के रूप में देखा जाने लगा—जिसने एक ओर संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर किया, तो दूसरी ओर अभूतपूर्व उथल-पुथल के बीच नेपाली जनता की दृढ़ता और जुझारूपन को भी दर्शाया।

जनवरी की शुरुआत देश-भर में आगजनी की घटनाओं में तेज़ बढ़ोतरी के साथ हुई, खासकर घनी आबादी वाले शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा और आपदा-तैयारी को लेकर चिंता बढ़ गई। इसी दौरान विपक्षी दलों ने शासन की विफलताओं, महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर सरकार की आलोचना शुरू कर दी थी।

फरवरी में श्रमिक-संबंधी अशांति और नागरिक असंतोष और गहराया। शिक्षक संगठनों, सिविल सेवकों और स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों ने बेहतर कार्य-परिस्थितियों की मांग और प्रस्तावित नीतिगत सुधारों के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन किए।

मार्च में राजशाही समर्थक समूहों द्वारा काठमांडू और अन्य शहरों में बड़े-पैमाने पर रैलियां आयोजित किए जाने से राजनीतिक तनाव और बढ़ गया। प्रदर्शनकारियों ने राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की। इन रैलियों के दौरान सुरक्षा बलों से झड़पें हुईं, जिनमें दो लोगों की मौत, दर्जनों के घायल होने और राजधानी के कुछ हिस्सों में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई। इन घटनाओं ने नेपाल की गणतांत्रिक व्यवस्था पर राष्ट्रीय बहस को फिर से तेज कर दिया।

अप्रैल में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने प्रस्तावित शिक्षा सुधारों के खिलाफ लगातार राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया। कई जिलों में स्कूलों की पढ़ाई बाधित हुई और शिक्षकों ने सरकार पर पूर्व समझौतों की अनदेखी व नौकरी की सुरक्षा कमजोर करने का आरोप लगाया।

मई में प्राकृतिक आपदाओं ने एक बार फिर जलवायु-जनित जोखिमों के प्रति नेपाल की संवेदनशीलता को उजागर किया। हुम्ला जिले में ग्लेशियर झील फटने से आई बाढ़ ने ढांचागत सुविधाओं को नुकसान पहुँचाया, स्थानीय लोगों को विस्थापित किया और आजीविका प्रभावित हुई।

जून में मानसून की शुरुआत के साथ भूस्खलन, स्थानीय बाढ़ और कई पहाड़ी व हिमाली जिलों में सड़कों के अवरुद्ध होने की घटनाएं सामने आईं।

जुलाई विशेष रूप से विनाशकारी रहा, जब रसुवागढ़ी और आसपास के क्षेत्रों में भीषण बाढ़ से फ्रेंडशिप ब्रिज ध्वस्त हो गया और चीन के साथ सीमा-पार व्यापार बाधित हो गया। जान-माल की हानि, क्षतिग्रस्त वाहन और फँसा हुआ माल इस बाढ़ को वर्ष की सबसे आर्थिक रूप से नुकसानदेह आपदा बना गया।

अगस्त एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जब युवाओं के नेतृत्व वाला विद्रोह देश-भर में तेज़ हो गया। भ्रष्टाचार, अवसरों की कमी और डिजिटल स्वतंत्रताओं पर पाबंदियों—खासतौर पर सरकार द्वारा प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को नियंत्रित करने व प्रतिबंधित करने के प्रयास—ने छात्रों और युवा पेशेवरों के बीच असंतोष को और भड़का दिया।

सितंबर इस साल का सबसे निर्णायक और अशांत महीना बन गया। युवाओं के नेतृत्व में शुरू हुए ये आंदोलन जल्द ही राष्ट्रव्यापी जेन-जी विरोध-प्रदर्शनों में बदल गए, जिनमें काठमांडू और प्रमुख शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। तनाव बढ़ने के साथ प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हुईं और व्यापक हिंसा फैल गई। राज्य के प्रमुख प्रतीकों और राजनीतिक केंद्रों को निशाना बनाया गया। कई सरकारी इमारतों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और प्रशासनिक परिसरों में तोड़फोड़ व आगजनी हुई। विशेष रूप से सिंहदरबार परिसर के कुछ हिस्सों में आग लगाए जाने को जड़ जमाए राजनीतिक सत्ता के खिलाफ जनता के गुस्से के प्रतीक के रूप में देखा गया। इसके जवाब में प्रशासन ने कर्फ्यू लगाया, अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए और कई जिलों में आपातकालीन प्रतिबंध लागू किए।

इस अशांति में कम से कम 78 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल हुए, जिससे यह नेपाल के हालिया इतिहास में नागरिक अशांति की सबसे घातक घटनाओं में से एक बन गई। व्यापक तबाही, जान-माल की भारी क्षति और सार्वजनिक व्यवस्था के चरमराने ने जनता के गुस्से की गहराई को उजागर किया और देश की राजनीतिक दिशा में एक निर्णायक मोड़ को रेखांकित किया। लगातार बढ़ते दबाव के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। संसद को भंग कर समय से पहले चुनावों की घोषणा की गई, जिसे युवाओं की व्यापक लामबंदी से प्रेरित एक ऐतिहासिक राजनीतिक परिवर्तन के रूप में देखा गया।

सितंबर की अशांति के बाद अक्टूबर का महीना देश को स्थिर करने और जनता का विश्वास दोबारा कायम करने के प्रयासों में बीता। प्रधानमंत्री कार्की के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार ने कानून-व्यवस्था बहाल करने, प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ्यू हटाने और हिंसा की जांच शुरू करने पर त्वरित ध्यान दिया। पीड़ित परिवारों के लिए मुआवज़ा कार्यक्रमों की घोषणा की गई तथा घायलों और विस्थापितों के लिए आपात राहत उपाय लागू किए गए।

नवंबर में राजनीतिक दलों ने 2026 के घोषित चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतियाँ बदलनी शुरू कर दीं। चुनावी सुधार, गठबंधन राजनीति और संवैधानिक स्थिरता पर चर्चाएं तेज़ हो गईं। इसी बीच बाढ़ और आग से प्रभावित क्षेत्रों में आपदा-उबरने के प्रयास जारी रहे, हालांकि धीमी पुनर्निर्माण प्रक्रिया और राहत वितरण को लेकर आलोचनाएँ बनी रहीं।

दिसंबर का माह मिश्रित भावनाओं के साथ समाप्त हुआ। राजनीतिक अनिश्चितता बनी रही। राजनीतिक दलों का ध्यान एकता प्रयासों पर केंद्रित रहा, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी (आरएसपी) के भीतर बालेन शाह, कुलमान घिसिंग और अन्य प्रमुख नेताओं ने आंतरिक एकजुटता मजबूत करने और 2026 के चुनावों से पहले संयुक्त मोर्चा प्रस्तुत करने के लिए बातचीत की। ये प्रयास विभिन्न राजनीतिक समूहों के बीच गठबंधनों को स्थिर करने, समर्थन आधार मजबूत करने और आने वाले चुनावी मुकाबलों की तैयारी को दर्शाते हैं। वर्ष के अंत में विश्लेषकों ने 2025 को नेपाल के लिए एक निर्णायक मोड़ बताया, जिसे युवाओं के नेतृत्व में राजनीतिक उथल-पुथल, जलवायु-जनित आपदाओं और स्थापित सत्ता संरचनाओं को मिली गहरी चुनौती ने परिभाषित किया, साथ ही प्रमुख दलों के बीच उभरते राजनीतिक पुनर्संतुलन और नई रणनीतिक योजना के संकेत भी इसमें स्पष्ट दिखे।

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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास