धर्म को मानने वाले नफ़रत और रंजिशों को ख़त्म करने की भी करें कोशिश : सैयद हसन
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- Dec 31, 2025
भागलपुर, 31 दिसंबर (हि.स.)। भागलपुर के घंटाघर स्थित टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में आयोजित सद्भावना सम्मेलन के सातवें एवं अंतिम दिन बुधवार को ख़ानक़ाह पीर दमड़िया शाह ख़लीफ़ा बाग़ भागलपुर के सज्जादानशीन मौलाना सैयद शाह फ़ख़रे आलम हसन ने अपने प्रभावशाली और विचारोत्तेजक संबोधन के माध्यम से धार्मिक सौहार्द, आपसी प्रेम और मानवता के प्रसार का संदेश दिया।
मौलाना सैयद शाह फ़ख़्र आलम हसन ने कहा कि आज हमारे देश को सबसे अधिक आवश्यकता सच्ची सद्भावना, आपसी सम्मान और आध्यात्मिक मूल्यों को अपनाने की है। उन्होंने कहा कि दुनिया की सभी आसमानी किताबें और ईश्वरीय शिक्षाएँ—चाहे वेद हों, क़ुरआन हो, बाइबिल हो या अन्य धर्मग्रंथ—सभी का मूल संदेश एक ही है कि हम सबका सृष्टिकर्ता, पालनहार और मालिक एक है। कोई उसे भगवान कहता है, कोई अल्लाह, कोई ईश्वर, लेकिन सच्चाई यही है कि प्रभु एक है और हम सब उसी के बंदे हैं। उन्होंने कहा कि मानवता, प्रेम और भाईचारा हर धर्म की मूल आत्मा है। क़ुरआन करीम का हवाला देते हुए
उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने समस्त मानव जाति को एक ही पुरुष और एक ही स्त्री से पैदा किया है, इस दृष्टि से पूरी मानवता एक परिवार है। जाति, धर्म, राष्ट्र और भाषा के भेद के बावजूद हम सभी एक ही ईश्वर के बंदे और एक ही माता-पिता की संतान हैं। मौलाना ने ज़ोर देकर कहा कि यदि हम सच्चे धर्मावलंबी, सच्चे सनातनी और सच्चे मोमिन हैं, तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि नफ़रत की आग को बुझाएँ, दिलों में पैदा होने वाली दूरियों और रंजिशों को समाप्त करें और समाज को जोड़ने का कार्य करें। भारत की महान सभ्यता, उसकी आत्मा और उसकी पहचान प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारा है।
उन्होंने हज़रत मुहम्मद के हदीसों का हवाला देते हुए कहा कि जो व्यक्ति छोटों पर दया नहीं करता और बड़ों का सम्मान नहीं करता, वह हम में से नहीं है और यह कि कोई व्यक्ति उस समय तक पूर्ण मोमिन नहीं हो सकता जब तक उसका पड़ोसी उसके शर से सुरक्षित न हो। इसलिए हमें ऐसा इंसान बनना चाहिए जिससे किसी को कष्ट न पहुँचे, बल्कि हर व्यक्ति को शांति और सुकून मिले। अपने संबोधन के अंत में मौलाना सैयद शाह फ़ख़रे आलम हसन ने कुछ शेरों के माध्यम से उपस्थित लोगों को संदेश देते हुए कहा कि हमारा काम नफ़रत के अंधेरों में प्रेम के दीप जलाना है, चाहे सामने मित्र हो या शत्रु। उन्होंने कहा कि यदि हम राजनेताओं की नफ़रत फैलाने वाली बातों में आ गए तो देश का नुकसान होगा, इसलिए आवश्यक है कि हम भारत की उस परंपरा को जीवित रखें, जहाँ से हमेशा यह आवाज़ उठी है—
“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।”
उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम भागलपुर दंगे के बाद से अब तक हिंदू भाइयों द्वारा निरंतर आयोजित किया जा रहा है, जिसमें हर धर्म के धर्मगुरुओं को आमंत्रित किया जाता है और उनके विचारों को सुना जाता है। यह भागलपुर की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांप्रदायिक सौहार्द की एक सुंदर मिसाल है।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिजय शंकर



