गुरुग्राम: भगवत गीता धर्मग्रंथ नहीं जीवन-दर्शन का सर्वोत्तम मार्गदर्शक: विकास अरोड़ा

-अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत गुरुग्राम विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही यह बात

-विकसित भारत 2047: भगवत ज्ञान से राष्ट्र-निर्माण की दिशा पर विशेषज्ञों ने किया मंथन

गुरुग्राम, 28 नवंबर (हि.स.)। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत गुरुग्राम विश्वविद्यालय में शुक्रवार को भारतीय ज्ञान एवं भाषा विभाग तथा जिला प्रशासन गुरुग्राम द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

विकसित भारत 2047: भगवत ज्ञान से राष्ट्र-निर्माण की दिशा विषय पर केंद्रित यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार में आयोजित हुई, जिसमें बड़ी संख्या में उच्चतर शिक्षा विभाग एवं स्कूल शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि शामिल रहे। कार्यक्रम में हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एस.के. हुड्डा तथा संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल के पूर्व कुलपति डॉ. श्रेयांश द्विवेदी ने विशेष व्याख्यान दिए। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि सीपी विकास अरोड़ा ने कहा कि भगवत गीता मात्र एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है, जो हर व्यक्ति को कर्तव्य, साहस, नैतिकता और संतुलन का मार्ग दिखाती है। उन्होंने कहा कि भारत के विकसित राष्ट्र बनने की आधारशिला तभी मजबूत होगी जब नागरिक अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देंगे और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ईमानदारी, समर्पण और सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाएंगे। उन्होंने गीता को आधुनिक प्रशासन, नेतृत्व और संघर्ष-प्रबंधन का सर्वोत्तम मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि पुलिसिंग जैसी कठिन सेवा में भी गीता के उपदेश मानसिक एकाग्रता, संयम और निर्भयता प्रदान करते हैं।सीपी विकास अरोड़ा ने कहा कि विकसित भारत 2047 का लक्ष्य तभी संभव है जब युवा पीढ़ी ज्ञान और चरित्र—दोनों की शक्ति को समान रूप से अपनाए। उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे डिजिटल युग की गति के साथ-साथ गीता के मूल्यों को भी जीवन में उतारें, क्योंकि तकनीक विकास देती है, लेकिन मूल्य दिशा देते हैं। उन्होंने कहा कि गीता का कर्मयोग व्यक्ति को उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने, चुनौतियों का सामना करने और समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाने की प्रेरणा देता है।

गुरुकुल कांगड़ी के पूर्व कुलपति डॉ एस.के हुड्डा ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भगवत गीता केवल ग्रंथ नहीं बल्कि राष्ट्रीय चेतना, राजनीतिक विचार, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि संस्कृति से समाज बनता है और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है। संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल के पूर्व कुलपति डॉ. श्रेयांश द्विवेदी ने कहा कि गीता का कर्मयोग, नेतृत्व, कर्तव्यपालन और नैतिक स्पष्टता विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय संकल्प को ठोस दिशा प्रदान कर सकती है। उन्होंने कहा कि गीता आज भी जीवन, समाज और राष्ट्र निर्माण का मार्गदर्शक ग्रंथ है। इस अवसर पर गुरुग्राम विश्वविद्यालय से रजिस्ट्रार संजय अरोड़ा, डॉ भूपेंद्र, डीआईपीआरओ बिजेंद्र कुमार, डॉ. मीनाक्षी, डॉ. सुप्रिया, जिओ गीता संस्थान से लोकेश नारंग सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर