हिमाचल राजभवन अब हुआ ‘लोक भवन’ ब्रिटिश काल में निर्मित ऐतिहासिक धरोहर का बदला नाम

शिमला, 10 दिसंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित राज्यपाल का राजभवन अब ‘लोक भवन’ के नाम से जाना जाएगा। राज्यपाल सचिवालय ने एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर यह बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू करने की घोषणा की है।

अधिसूचना में कहा गया है कि यह नाम परिवर्तन भारत सरकार के गृह मंत्रालय से 25 नवंबर 2025 को प्राप्त आदेश के अनुपालन में किया गया है। इसमें स्पष्ट कहा गया है, इसके द्वारा अधिसूचित किया जाता है कि शिमला हिमाचल प्रदेश में 'राजभवन' का नाम अब 'लोक भवन' में संशोधित किया जाता है। यह अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू होती है।

इस बदलाव को राज्य में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने और राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक कार्यालय को आम जनमानस के और करीब लाने का एक प्रतीकात्मक कदम माना जा रहा है। यह कदम राजभवन को सिर्फ प्रशासनिक कार्यालय के रूप में देखने की बजाय इसे ‘जनता का भवन’ बनाने की दिशा में एक पहल है।

हालांकि यह ऐतिहासिक भवन केवल नाम परिवर्तन का ही केंद्र नहीं है। इसे पूर्व में ‘बार्न्स कोर्ट’ के नाम से जाना जाता था और इसका निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था। शिमला शहर के दक्षिणी हिस्से में स्थित यह भवन एक हेरिटेज ज़ोन के अंतर्गत आता है और यह अपने स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है।

इतिहास के अनुसार सबसे पहले 1832 में भारतीय सेना के ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ सर एडवर्ड बार्न्स ने इस स्थान पर निवास किया था। उसके बाद 1849 से 1864 तक विभिन्न ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ जैसे जनरल नेपियर, जनरल गोम, जनरल एन्सन, जनरल कैंपबेल और जनरल रोज़ ने इस भवन में निवास किया। यही वह स्थान था जहाँ 1857 के भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की खबर जनरल एन्सन को दी गई थी।

शुरुआती निर्माण के लिए 1 जनवरी 1830 को डॉ. जे. लडलो को कैप्टन सी.जे. केनेडी ने 200 वर्ग गज भूमि आवंटित की थी, जिस पर वार्षिक 40 रुपये का भूमि कर निर्धारित किया गया। इसके बाद 1 मई 1832 को 50 वर्ग गज अतिरिक्त भूमि भी आवंटित की गई और पेड़ काटने की अनुमति भी दी गई। इस सम्पत्ति का अधिकार बाद में सर एडवर्ड बार्न्स ने हासिल किया और उन्हें वार्षिक 40 रुपये किराए पर इसका उपयोग करने की अनुमति मिली।

1875 में इस सम्पत्ति को मेजर-जनरल सर पीटर लम्सडेन ने खरीदा। पंजाब सरकार ने 1878 में इसे औपचारिक निवास के रूप में खरीदने का प्रस्ताव रखा और 1879 में पंजाब के लिटेनेंट-गवर्नर सर रॉबर्ट एगर्टन ने इसे नियमित रूप से अपने निवास के रूप में लिया। उस समय भवन केवल एक मंजिला था और इसके ऊपर स्लेट की छत थी। 1879 से 1886 के बीच इसे नया रूप दिया गया और दो मंजिला संरचना का निर्माण हुआ।

भवन का स्थापत्य और परिसर आज भी अधिकांशतः उस समय के विवरण के अनुरूप है। पश्चिम, दक्षिण और पूर्व की ओर इसकी खुली दृष्टि, ऊँचे मैसनरी टेरेस, लॉन और बगीचे इसे एक विशिष्ट अंग्रेजी कंट्री हाउस जैसी बनावट देते हैं। समय-समय पर कई सुधार और निर्माण कार्य किए गए, जिनमें सर सी.यू. एचिसन के समय में डबल-स्टोरी बिल्डिंग का निर्माण प्रमुख है, जहाँ निचली मंजिल बॉल रूम और ऊपरी मंजिल में गवर्नर तथा उनके निजी सचिव के कार्यालय बनाए गए।

बार्न्स कोर्ट में लुभावना बाग़ और उद्यान हैं। कई ब्रिटिश गवर्नरों की पत्नियों ने यहाँ सामाजिक कार्यक्रमों की मेजबानी की। 1972 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसी भवन में हस्ताक्षर किए थे।

खास बात ये है कि विभिन्न ऐतिहासिक अवसरों और ब्रिटिश शासनकाल के प्रतीकों के बावजूद कुछ समय पहले यह भवन आम जनता के लिए भी खोल दिया गया है। उनका उद्देश्य आम आदमी को ऐतिहासिक और हेरिटेज भवनों तक पहुंच उपलब्ध कराना है।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा