नोएडा, 15 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश विशेष कार्यबल(एसटीएफ) ने जीएसटी चोरी के एक बड़े अंतर्राज्यीय रैकेट का पर्दाफाश करते हुए करोड़ों रुपये की राजस्व क्षति पहुंचाने वाले गिरोह के पांच सदस्यों को गिरफ्तार किया है। इनकी गिरफ्तारी एसटीएफ ऑफिस नोएडा से की गई है। गिरफ्तार आरोपियों के तार उत्तर प्रदेश, बिहार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़े पाए गए हैं।
यूपी एसटीएफ के एसपी राजकुमार मिश्रा ने बताया कि गिरोह बोगस फर्मों का पंजीकरण कर उनके नाम से फर्जी सेल्स इनवाइस और ई-वे बिल जारी करता था। इसके माध्यम से वास्तविक फर्मों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) बेचा जाता था। जिससे सरकार को करोड़ों रुपये के जीएसटी राजस्व का नुकसान हो रहा था। एसटीएफ ने चार आरोपियों को एसटीएफ फील्ड इकाई नोएडा कार्यालय में पूछताछ के दौरान पकड़ा है। जबकि पांचवें आरोपी की गिरफ्तारी बिहार के वैशाली जिले से की गई है।
उन्होंने बताया कि गिरफ्तार आरोपियों की पहचान बिदेश्वर प्रसाद पाण्डेय निवासी सुल्तानपुर, बबलू कुमार निवासी गोपालगंज बिहार, प्रिंस पाण्डेय निवासी गोपालगंज बिहार, दीपांशु शर्मा निवासी छपरा बिहार व जयकिशन निवासी वैशाली बिहार के रूप में हुई है। जयकिशन को छोड़कर अन्य चार आरोपी वर्तमान में गाजियाबाद में रहते थे।
गिरफ्तारी के दौरान एसटीएफ ने आरोपियों के कब्जे से चार लैपटॉप, नौ मोबाइल फोन और 13,500 रुपये नकद बरामद किए हैं। गिरफ्तार आरोपियों को आज दोपहर को न्यायालय में पेश किया गया। जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है।
एसटीएफ की पूछताछ में खुलासा हुआ है कि गिरोह का सरगना बिदेश्वर प्रसाद पाण्डेय वर्ष 2021 से गाजियाबाद में हिन्दुस्तान कोचिंग सेंटर के नाम से अकाउंटेंसी से जुड़ा प्रशिक्षण केंद्र चला रहा था। इस कोचिंग सेंटर में अकाउंटेंसी के साथ-साथ टैली, बीजी जैसे सॉफ्टवेयरों का प्रशिक्षण दिया जाता था। छात्रों को इनवाइस, ई-वे बिल और जीएसटी रिटर्न भरने की ट्रेनिंग दी जाती थी। इसी कोचिंग सेंटर के छात्र दीपांशु शर्मा और जयकिशन बाद में इस फर्जीवाड़े में शामिल हो गए। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद बिदेश्वर पाण्डेय ने इन्हें बोगस फर्म तैयार करने और उनके माध्यम से फर्जी सेल्स इनवाइस बेचने के काम में लगा दिया। एसटीएफ के अनुसार गिरोह पहले फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बोगस फर्मों का पंजीकरण कराता था। इसके बाद बिना किसी वास्तविक खरीद-फरोख्त के फर्जी सेल्स इनवाइस और ई-वे बिल तैयार किए जाते थे। इन दस्तावेजों को जीएसटी पोर्टल पर अपलोड कर दिया जाता था। वास्तविक फर्म धारक अपने एजेंटों के माध्यम से आरोपियों से संपर्क करते थे और अपनी फर्म के पक्ष में बोगस इनवाइस कटवाते थे। वास्तविक फर्म धारक जीएसटी नंबर, माल या सेवा की प्रकृति, मात्रा और कीमत का विवरण भेजता था। इसके आधार पर आरोपी बोगस फर्मों के नाम से फर्जी इनवाइस और ई-वे बिल तैयार कर व्हाट्सएप के जरिए भेज देते थे। इन फर्जी लेन-देन को वास्तविक दिखाने के लिए बैंक खातों के माध्यम से धनराशि का आवागमन दर्शाया जाता था। बाद में कैश या सर्कुलर ट्रेडिंग के जरिए राशि की भरपाई कर ली जाती थी।
जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपियों के मोबाइल फोन में 50 से अधिक ई-मेल आईडी लॉगिन थीं। इन्हीं के जरिए बोगस फर्मों का पंजीकरण, जीएसटी रिटर्न फाइलिंग और बैंक ट्रांजेक्शन के लिए ओटीपी प्राप्त किए जाते थे। अभियुक्तों के पास विभिन्न फर्मों के बैंक खातों की लॉगिन आईडी और पासवर्ड तक की पहुंच थी। जिससे वे आसानी से ट्रांजेक्शन कर लेते थे। मोबाइल फोन में उपलब्ध बैंक ट्रांजेक्शन की जांच में प्रथम दृष्टया करोड़ों रुपये की राजस्व क्षति होने के संकेत मिले हैं।
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हिन्दुस्थान/सुरेश
हिन्दुस्थान समाचार / सुरेश चौधरी



