वार्षिकी 2025 : मप्र के 19 धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी का निर्णय बना संस्कृति, सुशासन और सामाजिक सुधार का आधार

भोपाल, 29 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश सरकार का उज्जैन, ओंकारेश्वर, मैहर सहित प्रदेश के 19 प्रमुख धार्मिक स्थलों पर पूर्ण शराबबंदी लागू किया जाना राज्य के सामाजिक और प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण निर्णय के रूप में दर्ज हो चुका है। राज्य सरकार का यह अहम निर्णय आस्था, संस्कृति, सुशासन और सामाजिक सुधार का मजबूत आधार बना है।

वर्ष 2025 के लिए यह सशक्त कदम एक नीतिगत बदलाव भर नहीं कहा जा सकता है, बल्कि ये सुशासन और सामाजिक सुधार करने वाला सार्थक प्रयास बनकर सामने आया है। इस निर्णय के केंद्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की वह सोच स्पष्ट दिखाई देती है, जिसमें “धार्मिक स्थलों की गरिमा और सामाजिक मर्यादा” को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

दरअसल, मध्य प्रदेश को धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र माना जाता है। उज्जैन का महाकाल लोक, ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग, मैहर की शारदा माता, चित्रकूट, अमरकंटक, दतिया जैसे स्थल पूरे देश के श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़े हैं। लंबे समय से इन क्षेत्रों में शराब की बिक्री और सेवन को लेकर संत समाज, महिला संगठनों और स्थानीय नागरिकों की आपत्तियाँ सामने आती रही थीं। इन्हीं भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 19 धार्मिक नगरों और उनके आसपास के क्षेत्रों में शराब की खुदरा बिक्री, बार और सार्वजनिक सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव का स्पष्ट संदेश, आस्था की जगह पर नशे की जरूरत नहीं

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस फैसले पर साफ कहा था कि “धार्मिक स्थलों की पहचान केवल पर्यटन से नहीं, बल्कि वहां की पवित्रता, अनुशासन और सांस्कृतिक वातावरण से होती है। जहां श्रद्धा होती है, वहां नशे के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।” कहने का मतलब कि आस्था

के साथ कोई खिलवाड नही होने दिया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय किसी वर्ग के खिलाफ नहीं है, समाज के हित में लिया गया है।

मुख्यमंत्री के अनुसार, “राज्य सरकार का दायित्व सिर्फ राजस्व अर्जित करना नहीं है, बल्कि समाज को सही दिशा देना भी है। अगर धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी से सामाजिक शांति और पारिवारिक वातावरण मजबूत होता है, तो यह त्याग स्वीकार्य है।” कहने को इस फैसले को लागू करना प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि आबकारी राजस्व पर इसका सीधा असर पड़ता है। इसके बावजूद सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर आबकारी विभाग ने संबंधित क्षेत्रों में शराब दुकानों के लाइसेंस निरस्त या अन्यत्र स्थानांतरित किए। पुलिस और जिला प्रशासन को अवैध शराब पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए गए। स्थानीय निकायों और सामाजिक संगठनों को जागरूकता अभियान से जोड़ा गया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से यह भी कहा कि शराबबंदी केवल “कागजी आदेश” न रह जाए, बल्कि इसका वास्तविक असर जमीन पर दिखना चाहिए।

आर्थिक पक्ष और संतुलन की सार्थक कोशिश रंग लाई

शराबबंदी से यह आशंका जरूर जताई गई कि राज्य को राजस्व का नुकसान होगा। लेकिन सरकार का तर्क स्पष्ट था कि इन क्षेत्रों में धार्मिक पर्यटन और स्थानीय व्यवसायों से होने वाली आय लंबे समय में इसकी भरपाई कर सकती है। 2025 में उज्जैन, ओंकारेश्वर और मैहर जैसे शहरों में श्रद्धालुओं की संख्या और ठहराव अवधि में वृद्धि देखी गई। होटल, धर्मशाला, प्रसाद, फूल, हस्तशिल्प और स्थानीय परिवहन से जुड़े लोगों को लाभ मिला। मुख्यमंत्री ने इस पर कहा, “धार्मिक शहरों का विकास नशे पर आधारित नहीं होना चाहिए। हम चाहते हैं कि यहां रोजगार, संस्कृति और सेवा के माध्यम से आगे बढ़ें।”

कठिन निर्णय दिया राजनीतिक और सामाजिक संदेश

राजनीतिक दृष्टि से यह निर्णय सरकार की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सामाजिक उत्तरदायित्व की नीति को मजबूत करता है। 2025 में यह फैसला एक ऐसे मॉडल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें सीमित क्षेत्र में शराबबंदी लागू कर सामाजिक सुधार को प्राथमिकता दी गई है। यह संदेश भी गया कि सरकार जनभावनाओं को सुनती है और कठिन निर्णय लेने से पीछे नहीं हटती।

आज उज्जैन, ओंकारेश्वर, मैहर सहित 19 धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी मध्य प्रदेश के लिए एक साहसिक, संवेदनशील और दूरदर्शी निर्णय साबित हुई है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में यह कदम यह दर्शाता है कि शासन का उद्देश्य आर्थिक लाभ से अधिक समाज की नैतिक और सांस्कृतिक मजबूती भी है। 2025 के परिप्रेक्ष्य में यह नीति धार्मिक स्थलों की गरिमा बनाए रखने, सामाजिक शांति स्थापित करने और विकास के एक वैकल्पिक, मूल्य-आधारित मॉडल की ओर बढ़ने का महत्वपूर्ण उदाहरण भी माना जा सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी