नालंदा विश्वविद्यालय में एशियन डायलॉग ऑन रूरल डेवलपमेंट कार्यक्रम संपन्न

नालंदा, 11 दिसंबर (हि.स.)। बिहार में नालंदा जिले के राजगीर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में गुरुवार को एशिया की साझी चुनौतियां और अवसर के विषय पर आयोजित क्षेत्रीय कार्यशाला ससाकावा पीस फाउंडेशन (जापान), एशियन कॉन्फ्लुएंस (भारत), और मुसुबि-ते फाउंडेशन (जापान–भारत) के सहयोग से एकदिवसीय एशियन डायलॉग ऑन रूरल डेवलपमेंट कार्यक्रम संपन्न हुआ।

बीते 07 दिसंबर से 11 दिसंबर तक नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित इस कार्यशाला में भारत, इंडोनेशिया, जापान, फिलिपींस और थाईलैंड के प्रतिभागियों, नीति विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने ग्रामीण विकास से जुड़ी चुनौतियों और संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया गया।

कार्यशाला के आखिरी दिन आज प्रतिभागियों के शैक्षणिक भ्रमण के लिए निर्धारित किया गया है।कार्यक्रम में छह प्रमुख विषयों पर खास ध्यान दिया गया है। जनसांख्यिकीय परिवर्तन, जलवायु अनुकूलन क्षमता, डिजिटल समावेशन, संस्थागत नवाचार, युवा सशक्तिकरण और समावेशी आर्थिक विकास एवं सामाजिक स्थिरता। प्रतिभागियों ने ग्रामीण बिहार का अध्ययन भ्रमण और साथ ही बोधगया एवं नालंदा के ऐतिहासिक स्थलों का शैक्षणिक भ्रमण कर रहे हैं, जिससे उन्हें ग्रामीण जीवन की हकीकत, सांस्कृतिक विरासत और समुदाय आधारित विकास मॉडल समझने का मौका मिला है।

कार्यशाला के उद्घाटन में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने कहा, “नालंदा में इस संवाद का होना हमारे लिए गर्व की बात है क्योंकि यह स्थल सदियों से विचार और ज्ञान का केन्द्र रहा है। एशिया में ग्रामीण विकास का अध्ययन करते हुए यह समझना जरूरी है कि हमारे गाँवों में बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि एक गहरे सांस्कृतिक बदलाव की प्रक्रिया है। पारंपरिक ग्रामीण ढांचे में बदलाव, औद्योगिकीकरण का दबाव और कारीगर वर्ग का हाशिये पर जाना बताता है कि हमें आधुनिकीकरण को संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ाना होगा।

आज जब ग्लोबल साउथ पुराने मॉडल से आगे बढ़ रहा है, तो स्थानीय ज्ञान, सामुदायिक लचीलापन और जमीनी नवाचार से नए रास्ते बन रहे हैं। हमारा मकसद ऐसी विकास रणनीतियाँ बनाना है जो गरिमा बनाए रखें, समुदायों को सशक्त करें और ग्रामीण जीवन को संजीवित करें।

यह कार्यशाला एशिया के लिए सतत और न्यायपूर्ण ग्रामीण विकास की सामूहिक स्थानीय दृष्टि की ओर बड़ा कदम है।इस कार्यशाला में एशिया के प्रमुख संस्थानों के कई वरिष्ठ वक्ताओं ने भाग लिया।

ससाकावा पीस फाउंडेशन की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. नोबुको कयाशीमा ने स्वागत भाषण दिया, जिसके बाद प्रोग्राम ऑफिसर श्री केनिचिरो इवाहोरी ने ओरिएंटेशन सत्र का संचालन किया। जापान रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. कोसुके मोतानी ने भारत और जापान की जनांकिकीय स्थितियों की तुलना करते हुए मुख्य संबोधन दिया।

एशियन कॉन्फ्लुएंस की सुश्री समझिता नंदी और सब्यसाची दत्ता ने एशियाई देशों में ग्रामीण विकास में समुदाय से जुड़ाव की भूमिका पर प्रकाश डाला। इंटेलकैप के संतोष सिंह और अश्व फाइनेंस के एमडी एवं सीईओ आत्रेय रायाप्रोलु ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव निवेश (इम्पैक्ट फाइनेंस) की बढ़ती संभावनाओं पर अपने विचार साझा किए।

इसके अलावा, मेघालय के सांसद डॉ. रिकी ए. सिंगकॉन और भारत के पूर्व राजदूत संजय कुमार पांडा ने स्थानीय शासन, जनभागीदारी और एशियाई सहयोग की अहम भूमिका पर महत्वपूर्ण बातें कही हैं नालंदा विश्वविद्यालय इन साझेदारियों को और सुदृढ़ करने तथा अंतर्सांस्कृतिक संवाद, नेतृत्व विकास और सतत ग्रामीण परिवर्तन के प्रति अपने प्रतिबद्ध प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित है।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रमोद पांडे