सोनीपत: हरियाणे का छौरा ट्रैक्टर को घर बनाकर भारत भ्रमण पर निकला

सोनीपत  रॉकी शाहपुरिया के फेसबुक पेज से

-एक अनोखा ट्रैवलर जो अकेला पूरे भारत को नाप रहा

है

सोनीपत, 30 नवंबर (हि.स.)। सोनीपत के गांव शाहपुर का रहने वाला यह हरियाणे का छौरा अपने

ट्रेक्टर का घर बनाकर पूरे भारत में घूमने चला है। मिस्टर दिल्ली रह चुके बॉडी बिल्डर,

जिम ओनर और अब पूर्णकालिक ट्रैवलर रॉकी शाहपुरिया आजकल अपने मॉडिफाइड ट्रैक्टर में

ही रहते-सोते-खाना बनाते और देश घूम रहे हैं। चार दिसंबर 2024 को नया 4 बाय 4 ट्रैक्टर खरीदा

और उसी महीने स्पीति का 28 दिन का खतरनाक टूर निकाला। उसके बाद 55 दिन का

लद्दाख टूर, समर स्पीति, चारधाम यात्रा और अभी-अभी आदि कैलाश-ओम पर्वत की कठिन यात्रा

पूरी करके लौटे हैं।

रॉकी का ट्रैक्टर कोई साधारण ट्रैक्टर नहीं है यह उनका चलता-फिरता

घर है। अंदर डबल बेड, किचन, गैस सिलेंडर, 55 लीटर एक्स्ट्रा डीजल टैंक, फ्रिज की जगह

स्टोरेज, इंसुलेशन के लिए थर्माकोल-प्लाई और फॉर्म शीट, सनरूफ, पर्दे, बैक कैमरा, बाहर

निकलने वाला 9 फुट का शेड सब कुछ खुद के दिमाग और लोकल मिस्त्रियों से बनवाया। सोलर

पैनल नहीं लगवाया क्योंकि ट्रैक्टर का अल्टरनेटर ही दो बैटरियां चार्ज कर देता है।

रॉकी शाहपुरिया बताते हैं कि पहले मुझे खाना बनाना तक नहीं

आता था, रोटी बनाना तो सबसे मुश्किल लगता था रॉकी हंसते हुए बताते हैं कि अब पोहा,

फ्राइड राइस, दाल-चावल, छोले, रोटी सब बनाता हूं, मजे से खाता हूं। कभी-कभी 50-60 गोलगप्पे

बनाकर रास्ते में मिलने वालों को खिलाता हूं। अकेले खाने में मजा नहीं आता।

रॉकी ने बताया कि पहले सोनीपत में द ब्लैक बुल जिम चलाते थे।

2012 से बॉडी बिल्डिंग में थे, चार बार मिस्टर दिल्ली बने। कोरोना के बाद जिम खोला,

2024 तक चलाया। ट्रैवल का जुनून इतना था कि जिम अपने जीजा को सौंप दिया और बोले

तुमने ही कहा था ट्रैक्टर लेकर निकलो, अब तुम संभालो।

सबसे दिलचस्प बात यात्रा शुरू करने के तीसरे दिन ही उनका मन

टूट गया था। बच्चों से दूर रहने की सोचकर घर लौटने का फैसला कर लिया था। पत्नी ने उसका समर्थन किया और कहा कि 4-5 दिन मजे करके आ जाओ।

बस यही बात जादू कर गई। उसके बाद रॉकी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। अब परिवार का शत प्रतिशत

सहयोग है। अगली बार मनाली ट्रिप में वह भी साथ ही जाएगी।

रॉकी कहते हैं कि ट्रैक्टर की माइलेज 4-5 किमी/लीटर है, लद्दाख

ट्रिप में 65 हजार का डीजल लगा, लेकिन यूनिकनेस इसी में है। गाड़ी से टूर करते तो शायद

15-20 हजार में हो जाता, पर सोशल मीडिया पर व्यूज और प्यार भी इतना नहीं मिलता। रॉकी जहां जाते हैं वहां का वीडियो डालते हैं। अब साेशल मीडिया से उन्हें कमाई भी हो रही है।

रास्ते में उनका ट्रैक्टर लोकल लोगों की लिफ्ट का भी काम

आता है। स्कूल के बच्चे, सड़क साफ करने वाले मजदूर, कभी बीमार बच्चे को अस्पताल छोड़ने

तक सबको बिठाते हैं। ट्रैक्टर पर लिखा है न: नो फार्मर, नो फूड और भगत सिंह की तस्वीर। अकेले ट्रैवल, अकेले शूट, अकेले एडिट रॉकी शाहपुरिया का सफर

अभी बहुत लंबा है। उनका ट्रैक्टर

अब सड़कों पर एक चलती-फिरती मिसाल बन चुका है कि अगर जुनून हो तो घर भी सड़क पर बना सकते हो।

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हिन्दुस्थान समाचार / नरेंद्र शर्मा परवाना