शिमला सरस मेले के स्टॉल पर दिखी मां के सपनों की मेहनत, भाई-बहन बने सहारा
- Admin Admin
- Dec 14, 2025
शिमला, 14 दिसंबर (हि.स.)। राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर चल रहे सरस मेले के स्टॉल से एक ऐसी कहानी सामने आ रही है, जो संघर्ष, भरोसे और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई है। कुल्लू जिले के कलेहली गांव का संधु स्वयं सहायता समूह यहां पारम्परिक कुल्लू वस्त्रों के साथ मौजूद है। इस समूह को आज इंदु और अमन नाम के दो भाई-बहन संभाल रहे हैं, जो अपनी मां के अधूरे सपने को आगे बढ़ाने के लिए पूरी मेहनत और लगन से काम कर रहे हैं।
कुल्लू जिला के गांव कलेहली, डाकघर बजौर, तहसील भुंतर का संधु स्वयं सहायता समूह वर्ष 2020 में पंजीकृत हुआ था। उस समय इस समूह का संचालन इंदु और अमन की मां करती थीं। उनका सपना था कि गांव की महिलाओं को साथ जोड़कर पारम्परिक वस्त्रों के जरिए उन्हें स्थायी रोजगार दिया जाए और स्थानीय शिल्प को पहचान मिले। वर्ष 2022 में उनके अचानक निधन से यह सपना अधूरा रह गया और समूह के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ गई।
इंदु और अमन के पिता सेना से सेवानिवृत्त हैं और वर्तमान में लारजी परियोजना में कार्यरत हैं। मां के निधन के समय इंदु बी-फार्मा की पढ़ाई पूरी कर पंचकूला की एक निजी कंपनी में करीब पांच वर्षों से नौकरी कर रही थीं, जबकि छोटा भाई अमन बीबीए की पढ़ाई कर रहा था। कठिन परिस्थितियों में दोनों भाई-बहन ने मिलकर फैसला लिया कि वे मां द्वारा शुरू किए गए स्वयं सहायता समूह को बंद नहीं होने देंगे और उसे आगे बढ़ाएंगे।
इंदु ने अपनी नौकरी छोड़कर समूह की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली। उन्होंने समूह में तैयार होने वाले उत्पादों को गहराई से समझना शुरू किया और साथ ही समूह से जुड़ी करीब 18 महिलाओं को भरोसा दिलाया कि उनके रोजगार में कोई परेशानी नहीं आने दी जाएगी। इसके बाद से पिछले तीन वर्षों से इंदु और अमन मिलकर पारम्परिक कुल्लू वस्त्रों का निर्माण कर रहे हैं और उन्हें देश और विदेश तक पहुंचा रहे हैं।
आज कलेहली में दोनों भाई-बहन अपनी दुकान भी चला रहे हैं, जहां समूह द्वारा बनाए गए सभी उत्पाद उपलब्ध हैं। संधु स्वयं सहायता समूह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से भी जुड़ा हुआ है। सरस मेला और विभिन्न हस्तशिल्प मेलों में यह समूह लगातार भाग लेता आ रहा है।
इंदु और अमन का कहना है कि सरकार के प्रयासों और मेलों में स्टॉल मिलने से उन्हें अपने उत्पादों को आम जनता तक पहुंचाने का बड़ा अवसर मिला है। यदि सरस मेला और ट्रेड फेयर जैसे आयोजन न होते, तो कारोबार का विस्तार करना आसान नहीं होता।
भाई-बहन बताते हैं कि समूह से जुड़ी महिलाएं पूरी तरह इसी काम पर निर्भर हैं और इससे उनकी आजीविका मजबूत हुई है। इंदु मार्केटिंग और बिक्री का काम देखती हैं, जबकि अमन उत्पादन और अन्य व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभालते हैं। दोनों का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में स्वयं सहायता समूह को और बड़े स्तर पर ले जाया जाए, ताकि ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति और बेहतर हो सके।
इंदु का कहना है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान पारम्परिक वस्त्रों से होती है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी इनसे दूर होती जा रही है। इसी सोच के साथ समूह पारम्परिक डिजाइनों को थोड़ा आधुनिक रूप देकर युवा पीढ़ी की पसंद के अनुसार तैयार कर रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा



