वीर सावरकर की पुस्तक ‘भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम अध्याय’ पर परिचर्चा , विद्वानों ने रखे विचार
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- Dec 29, 2025
- विद्वानों ने ‘सेक्युलर’ शब्द के गलत प्रयोग पर जताई चिंता
-कवि अरुण दीक्षित ने किया कविता पाठ
औरैया, 29 दिसंबर (हि. स.)। उत्तर प्रदेश के जनपद औरैया के दिबियापुर कस्बे में प्रज्ञा प्रवाह की कानपुर प्रांत इकाई ब्रह्मावर्त परिषद द्वारा संचालित शोध - अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में पुस्तक परिचर्चा एवं विषय परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की कालजयी पुस्तक ‘भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम अध्याय’ पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। इसके साथ ही भारतीय राजनीति और समाज में ‘सेक्युलर’ शब्द के कथित दुरुपयोग पर भी विद्वानों ने गंभीर चिंता व्यक्त की।
नगर पंचायत सभागार में आयोजित इस परिचर्चा की शुरुआत प्रज्ञा प्रवाह के जिला संयोजक आशीष मिश्रा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए की। उन्होंने आयोजन की रूपरेखा बताते हुए कहा कि इस तरह की परिचर्चाएं भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पक्षों को समझने और समाज में सही वैचारिक दृष्टि विकसित करने में सहायक होती हैं।
पुस्तक की विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए स्तंभकार, इतिहासकार एवं लेखक मुनीश त्रिपाठी ने कहा कि सावरकर ने भारतीय इतिहास की उन घटनाओं को सामने रखा है, जिन्हें लंबे समय तक उपेक्षित किया गया। उन्होंने बताया कि आचार्य चाणक्य ने आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारत में पहला संगठित जनआंदोलन खड़ा किया और चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में एक नागरिक सेना का निर्माण किया। इसी शक्ति के माध्यम से न केवल यूनानियों को भारत से बाहर किया गया, बल्कि मगध के नंदवंश को पराजित कर भारतीय राज्यों का एकीकरण भी संभव हुआ। उन्होंने पुष्यमित्र शुंग, यशोवर्धन और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे शासकों के गौरवपूर्ण इतिहास का भी उल्लेख किया।
‘सेक्युलर’ शब्द के दुरुपयोग पर अपने विचार रखते हुए मनीष यादव ने कहा कि दुर्भाग्यवश इस शब्द की व्याख्या और प्रयोग में भारी अंतर देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि इसका वास्तविक आशय कुछ और है, लेकिन व्यवहार में इसका प्रयोग एक विशेष दृष्टिकोण से किया जाता रहा है, जिससे समाज में असंतुलन उत्पन्न हुआ है।
परिचर्चा में आचार्य राघवेंद्र शुक्ला, डॉ. सुबेन्द्र सिंह, विशाल दुबे, रामजी मिश्रा, सत्या राजपूत, डॉ. सुरेन्द्र चौहान, देवेंद्र राजपूत, डॉ. अतुल मिश्रा, सुशांत त्रिपाठी, हरिश्चंद्र पोरवाल, नवीन तिवारी, मनोहर राजपूत सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इतिहासविद नरेश वर्मा ने कहा कि प्रचलित शब्दों और अवधारणाओं को वास्तविक तथा राजनीतिक दोनों दृष्टियों से समझना आवश्यक है, तभी हम सत्य के अधिक निकट पहुंच सकते हैं।
कार्यक्रम के अंत में कवि अरुण दीक्षित ने वीर रस से ओतप्रोत कविता का पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत भारती के जिला संयोजक विद्वान सुधाकर भट्ट ने संस्कारों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण पर बल दिया। परिचर्चा का संचालन आशीष मिश्रा ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार



