भागवत वैष्णवों का धर्म, पुराणों का तिलक, ज्ञानियों का चिंतन और भारत की धड़कन :डॉ पुण्डरीक

—बीएचयू के मालवीय भवन में महामना के जयंती पर सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा

वाराणसी,10 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के मालवीय भवन में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा में बुधवार को भी ज्ञान गंगा की धारा बही। बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय के जयंती के अवसर पर पॉच से 11 दिसबंर गुरूवार तक चलने वाले भागवत कथा में कथा वाचक डॉ पुण्डरीक शास्त्री को सुनने लिए श्रद्धालु उमड़ रहे है। कथा प्रसंग में डॉ शास्त्री ने बताया कि श्रीमद् भागवत वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रंथ है श्रीमद् भागवत में भक्ति ज्ञान वैराग्य की त्रिवेणी है। भागवत वैष्णवों का परम धर्म है, पुराणों का तिलक है, ज्ञानियों का चिंतन है, संतों का मनन है और भक्तों का बंदन तथा भारत की धड़कन है । उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण वही कर सकता है जिसके जीवन का सौभाग्य सर्वोच्च शिखर पर होता है। जिस पर भगवान की अतिशय कृपा होती है वही जीव भागवत की शरण में जाता है, भागवत भगवान का स्वरूप है। श्रीमद् भागवत वह शास्त्र है जिसमें बीते कल की स्मृति, आज का बोधऔर भविष्य की योजना है। भागवत स्वयं के मूल से परिचित कराने वाला ग्रंथ है। भगवान वेद व्यास ने भागवत की पंक्ति पंक्ति में ऐसा रस भरा है कि इसको आजीवन पीते रहें तो भी तृप्ति नहीं होती है । उन्होंने बताया कि दश लक्षणों से परिपूर्ण यह श्रीमद् भागवत है और इन्हीं दश लक्षणों का संपादन 12 स्कंधों में किया गया है। 335 अध्याय 12 स्कंध और 18000 श्लोक की संहिता है। भागवत के प्रारंभ में जो दो स्कंध हैं उनमें अधिकारी और साधन की प्रक्रिया बताई गई है, तीसरे स्कंध से सृष्टि का क्रम प्रारंभ होता है और बारहवें स्कंद में जाकर आश्रय का निरूपण होता है। इसके पहले श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा के चतुर्थ दिवस में भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य का महोत्सव मनाया गया। इस महोत्सव में यह बताया गया कि जो भगवान के जन्म का आनंद और उत्सव मनाता है उसका जीवन उत्सव मय और आनंदमय रहता है। भगवान आनंदमय और भगवान की कथा आनंदमय है आनंद स्वरूप परमात्मा का निरूपण ही श्रीमद् भागवत की कथा है। आयोजन के संरक्षक कुलपति प्रोफेसर अजित कुमार चतुर्वेदी और संयोजक संकाय प्रमुख प्रोफेसर राजाराम शुक्ल भी कथा में भागीदारी कर रहे है। कथा में प्रोफेसर धनंजय पांडेय, प्रोफेसर बृजभूषण ओझा, प्रोफेसर उपेंद्र त्रिपाठी, प्रोफेसर शैलेश तिवारी के साथ मुमुक्षु भवन आश्रम से दंडी स्वामी भी अपनी उपस्थति दर्ज करा रहे है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी