मथुरा के बेलवन में पौष माह के पहले गुरुवार काे उमड़ा सैलाब, आलौकिक दर्शन पाकर भक्त हुए निहाल

मथुरा, 11 दिसम्बर(हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जनपद मथुरा के मांट इलाके में पौष माह के हर गुरुवार को महालक्ष्मी मंदिर में मेला का आयोजन किया जाता है। पहले गुरुवार को मेले में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं ने बुधवार की शाम से ही वहां पहुंचना शुरू कर दिया। रात को भी जाम जैसे हालात बने रहे। रात भर पंडालों में भंडारे के लिए खिचड़ी प्रसाद तैयार होता रहा। गुरुवार को दिन निकलने से पहले ही श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब देर शाम तक चलता रहा।

मांट इलाके के बेलवन के जंगल में माता लक्ष्मी का प्राचीन मंदिर है। यहां पेड़ के नीचे मां लक्ष्मी की तपस्या की मुद्रा में मूर्ति विराजमान है। मान्यता है कि यहां आज भी मां लक्ष्मी तपस्या कर रहीं हैं। यहां आने वाली भक्तों की सभी मनोकामनाएं मां पूरी करती हैं। जंगल में करीब 5000 साल पुरानी मां लक्ष्मी की मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति तपस्या की मुद्रा में है। इसी के पास मां लक्ष्मी का मंदिर भी है। इसे वैभव लक्ष्मी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौष महीने में प्रत्येक गुरुवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। विशाल मेला भी लगता है। 30 दिनों तक यह क्रम जारी रहता है। मंदिर में मां लक्ष्मी को केवल खिचड़ी का ही भोग लगाया जाता है।

मंदिर के महंत गिरधारी ने बताया कि मान्यता है कि द्वापर युग में मां लक्ष्मी स्वर्ग लोक से धरती पर आईं थीं। यमुना नदी के पश्चिम दिशा की ओर वृक्ष के नीचे उनके पग चिन्ह बने हुए हैं। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण राधा समेत हजाराें गोपियों के साथ वृंदावन में महारास कर रहे थे। इसे देखने के लिए सभी देवी-देवता किसी न किसी रूप में स्वर्ग से धरती पर आए थे। भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण करके रास देखा। महंत ने बताया कि माता पार्वती लक्ष्मी जी का रूप धारण करके वृंदावन में प्रवेश करने लगी लेकिन गोपियों ने उन्हें रोक दिया। कहा कि आप रास नहीं देख सकती हैं। इस पर मां लक्ष्मी ने कहा कि मैं तो धन दौलत वैभव से परिपूर्ण हूं, महिला भी हूं फिर मैं क्यों नहीं देख सकती?. इस पर गोपियों ने कहा कि जो कृष्ण की गोपियां होंगी वही रास देख सकती हैं। इस पर मां लक्ष्मी नाराज होकर बेलवन के जंगल में जाकर यमुना जी की तरफ मुंह करके तपस्या करने बैठ गईं।

हिन्दुस्थान समाचार / महेश कुमार