ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक विनोद कुमार शुक्ल का निधन

रायपुर, 23 दिसंबर (हि.स.)। हिंदी के प्रख्यात कवि, कथाकार और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का 88 साल की उम्र में मंगलवार शाम रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। कुछ समय पहले ही उन्हें भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। पिछले कुछ महीनों से बीमार चल रहे विनोद शुक्ल का एम्स रायपुर में इलाज चल रहा था।

सांस लेने में दिक्कत के बाद शुक्ल को 2 दिसंबर को रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। उनके बेटे शाश्वत शुक्ल ने आज शाम उनके निधन की जानकारी दी है।

विनोद कुमार शुक्ल ने ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे चर्चित उपन्यास लिखे। उन्हें हिंदी साहित्य की सबसे अलग और विशिष्ट आवाज़ों में गिना जाता था। उनकी लेखन शैली सरल, अनोखी और गहरी अनुभूति देने वाली मानी जाती थी।

हिंदी साहित्य में उनके बेमिसाल योगदान, रचनात्मक उत्कृष्टता और विशिष्ट अभिव्यक्ति के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान, 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार 21 नवंबर को इसी वर्ष रायपुर में उनके निवास पर आयोजित समारोह में दिया गया था।

विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्मकार मणि कौल ने इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी। शुक्ल के दूसरे उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी -को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी रहे। उनके उपन्यासों ने हिंदी में एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है। अपने उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने हमारे दैनंदिन जीवन की कथा-समृद्धि को अद्भुत कौशल के साथ उभारा है। मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों का भारतीय कथा-सृष्टि में समृद्धिकारी योगदान है।

हिन्दुस्थान समाचार / केशव केदारनाथ शर्मा