(वार्षिकी-2025) हुगली जुट उद्योग के लिए चुनौतियों से भरा रहा साल

हुगली, 25 दिसंबर (हि.स.)। देश के जूट उद्योग की रीढ़ माने जाने वाले हुगली जिले के लिए साल 2025 चुनौतियों से भरा रहा। कभी ‘गोल्डन फाइबर’ के लिए मशहूर यह जिला पूरे साल बंद होती जूट मिलों, बकाया वेतन, पीएफ–ग्रेच्युटी भुगतान में अनियमितता और मजदूर असंतोष की खबरों में रहा। उत्पादन घटने और रोजगार संकट के चलते जूट उद्योग एक बार फिर गहरे संकट में फंसा नजर आया।

साल की शुरुआत ही मजदूरों के लिए निराशाजनक रही। जनवरी से मार्च के बीच श्रीरामपुर, रिषड़ा भद्रेश्वर, चंदननगर और चंपदानी इलाके की कई जूट मिलों में डीए महीनों से बकाया रहा। कई मजदूरों को समय पर वेतन नहीं मिला, जबकि पीएफ और ग्रेच्युटी जमा न होने की शिकायतें लगातार सामने आती रहीं। यूनियन नेताओं ने चेतावनी दी कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो बड़े आंदोलन का रास्ता अपनाया जाएगा।

अप्रैल से जून के बीच हालात और बिगड़ते चले गए। कुछ मिलों में आंशिक तालाबंदी तो कहीं उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया। काम के दिनों में कटौती के कारण मजदूरों की आमदनी प्रभावित हुई और कई कुशल कारीगर रोज़गार की तलाश में अन्य राज्यों का रुख करने लगे। इससे न केवल उद्योग, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा।

मानसून के महीनों में, जब उत्पादन बढ़ने की उम्मीद रहती है, तब भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। जुलाई और अगस्त में कई जगह धरना, गेट मीटिंग और ज्ञापन दिए गए, लेकिन मजदूर संगठनों का आरोप रहा कि प्रशासन और सरकार की ओर से ठोस पहल नहीं की गई। त्योहारों का मौसम आने के बावजूद मजदूरों को बोनस और बकाया भुगतान नहीं मिलने से असंतोष और गहराया।

नवंबर में पहली बार हुगली जिले की लगभग सभी जूट मिल यूनियनें एक मंच पर आईं। उन्होंने संयुक्त रूप से डीए, पीएफ, ग्रेच्युटी, पेंशन, मजदूरों पर हो रहे अत्याचार और बंद मिलों के मुद्दे को उठाया। इसी कड़ी में 12 दिसंबर को महेश–श्रीरामपुर में डिस्ट्रिक्ट लेवल ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले एक अहम बैठक हुई, जिसमें पूरे जिले के यूनियन नेता और मजदूर प्रतिनिधि शामिल हुए।

इस बैठक के बाद साल के अंत में एक सकारात्मक संकेत मिला। कार्यक्रम के संयोजक विजय पाण्डेय ने बताया कि केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री मनसुख मांडविया चार जनवरी 2026 को हुगली आकर जूट मिल यूनियन नेताओं से मुलाकात करेंगे। यह पहली बार होगा जब हुगली के जूट मजदूर अपनी समस्याएं सीधे केंद्रीय मंत्री के सामने रख पाएंगे। साल 2025 संघर्ष में बीता, लेकिन 2026 से जूट उद्योग को नई दिशा मिलने की उम्मीद अब भी बरकरार है।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय