आकाश ने एवरेस्ट की गोद में फहराया शाहपुरा का परचम

एवरेस्ट की गोद में शाहपुरा का परचम आकाश लोढ़ा: साहस की नई पहचान शाहपुरा से

भीलवाड़ा, 29 दिसंबर (हि.स.)। भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा की धरती ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सपनों की उड़ान ऊंचाइयों से नहीं, हौसलों से तय होती है। कस्बे के युवा पर्वतारोही आकाश लोढ़ा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी (नेपाल) बेस कैंप पर पहुंच 17598 फीट (5364 मीटर) की ऊंचाई पर तिरंगा फहराया और इतिहास रच दिया। बर्फीली हवाओं, माइनस तापमान और ऑक्सीजन की कमी से जूझते हुए आकाश ने वह कर दिखाया, जो साहस, धैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति का जीवंत उदाहरण बन गया है। आकाश वर्तमान में मल्टीनेशनल कंपनी में बैंगलुरु में कार्यरत है।

आकाश की यह यात्रा सिर्फ पहाड़ चढ़ने की नहीं थी, बल्कि हर कदम पर खुद से लड़ने की कहानी थी। अभियान शुरू होने के अगले ही दिन मौसम ने करवट ली और बर्फबारी का सिलसिला शुरू हो गया। जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती गई, सांसों पर दबाव बढ़ता गया। हर कदम के साथ शरीर जवाब देने लगा, लेकिन मन ने हार मानने से इनकार कर दिया। आठ दिन की कठिन यात्रा, लगातार बर्फीली हवाएं और जमा देने वाली ठंड के बीच आखिरकार वह पल आया, जब आकाश एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और तिरंगे को हवा में लहराते देख सुकून और गर्व से भर उठे।

करीब 130 किलोमीटर लंबी ट्रैकिंग इस अभियान का सबसे बड़ा इम्तिहान थी। रास्ते में कई बार ऑक्सीजन की कमी महसूस हुई। तापमान कभी माइनस 7 तो बेस कैंप पहुंचते-पहुंचते माइनस 22 डिग्री तक जा पहुंचा। खाने-पीने के नाम पर चॉकलेट, ड्राईफ्रूट और फल ही सहारा बने, जिनसे शरीर को ऊर्जा मिलती रही। ठंड इतनी तीखी थी कि स्किन बर्न हो गई, मुंह का स्वाद चला गया और हल्का बुखार भी चढ़ आया, लेकिन आकाश का हौसला डगमगाया नहीं।

अंतिम दिन 28 दिसम्बर की चढ़ाई सबसे कठिन साबित हुई। सुबह 8 बजे गोरखशेप से केवल आधा किलोमीटर का रास्ता तय करना था, लेकिन यह आधा किलोमीटर पत्थरों, बर्फ और तेज हवाओं के बीच किसी युद्ध से कम नहीं था। तीन घंटे की जद्दोजहद के बाद सुबह 11 बजे आकाश ने एवरेस्ट बेस कैंप पर कदम रखा और तिरंगा फहराकर शाहपुरा का नाम दुनिया की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। आकाश सुरक्षित वापसी की ओर प्रस्थान कर चुके है तथा 5 जनवरी 26 को बैंगलुरु पहुंचेगा।

आकाश की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि आकाश लोढ़ा शाहपुरा के पहले पर्वतारोही बन गए हैं, जिन्होंने इतनी कम उम्र में एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचने का साहसिक कारनामा किया। उन्होंने इस अभियान को राष्ट्र को समर्पित करते हुए यह संदेश दिया कि देश के लिए समर्पण और जुनून हर मुश्किल को आसान बना सकता है।

आकाश के पिता और शाहपुरा के समाजसेवी अनिल लोढ़ा ने बेटे की उपलब्धि पर गर्व जताते हुए कहा कि करीब 130 किलोमीटर की कठिन ट्रैकिंग और विपरीत परिस्थितियों में यह सफलता किसी इतिहास से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि आकाश की मेहनत और हिम्मत ने न केवल परिवार, बल्कि पूरे शाहपुरा को गौरवान्वित किया है।

शाहपुरा क्षेत्र में आकाश की इस उपलब्धि को लेकर खुशी की लहर है। लोगों का कहना है कि आकाश ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो पहाड़ भी रास्ता दे देते हैं। उसकी सफलता से युवाओं में साहसिक खेलों और पर्वतारोहण के प्रति नया जोश और रोमांच पैदा हुआ है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / मूलचंद