वाराणसी सारनाथ में तमिल छात्रों ने देखा भारत की प्राचीन बौद्ध विरासत
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- Dec 03, 2025
—उत्तर और दक्षिण भारत के बीच साझा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जड़ों को समझा
वाराणसी, 03 दिसम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में आयोजित
काशी तमिल संगमम (केटीएस) 4.0 के तहत आए तमिलनाडु के छात्र प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार शाम ऐतिहासिक सारनाथ में भ्रमण किया। यहां तमिल छात्रों ने बौद्ध धर्म की अमूल्य विरासत को देखा। छात्रों ने सारनाथ संग्रहालय में मौर्यकालीन अवशेषों, विशेष रूप से अशोक स्तम्भ के सिंह चतुर्मुख शीर्ष को पूरे उत्साह के साथ देखा, जो भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
इसके बाद, उन्होंने धर्मस्तूप (धमेख स्तूप) का भी अवलोकन किया। जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। इस यात्रा ने छात्रों को उत्तर और दक्षिण भारत के बीच साझा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जड़ों को गहराई से समझने का अवसर दिया। प्रतिनिधिमंडल ने इस अनुभव को 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना को मजबूत करने वाला बताया।
—काशी में नाविक परिवारों के बच्चे सीख रहे तमिल
काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत नमो घाट पर एक विशेष और प्रेरक पहल की शुरुआत की गई है, जहाँ गंगा तट पर नाविक परिवारों के बच्चे अब तमिल भाषा सीख रहे हैं। आईआईटी मद्रास द्वारा संचालित विद्या शक्ति स्टॉल पर इन बच्चों के लिए रोज़ाना तमिल सीखने का सत्र आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने प्रतिदिन 5 तमिल शब्द सीखने का संकल्प लिया है, ताकि वे तमिलनाडु से आने वाले अतिथियों से सरलता और आत्मीयता से संवाद स्थापित कर सकें। माना जा रहा है कि यह प्रयास न केवल भाषा सीखने का माध्यम है, बल्कि दो प्राचीन सभ्यताओं काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नाविक समुदाय काशी की संस्कृति में विशेष स्थान रखता है।
गंगा की लहरों के साथ जीवन जीने वाले इन परिवारों के बच्चे काशी आने वाले तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों से निरंतर संपर्क में रहते हैं। तमिल भाषा का ज्ञान उन्हें सांस्कृतिक संवाद और पर्यटन के नए अवसर भी प्रदान करेगा। नमो घाट पर शुरू हुई यह छोटी-सी सीखने की यात्रा आने वाले दिनों में बड़े सांस्कृतिक बदलाव का आधार बनेगी। यह संदेश देती हुई कि गंगा और कावेरी केवल नदियाँ नहीं भारत की आत्मा को जोड़ने वाली अनंत धारा हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी



