कोई भी नवाचार मनुष्यता का सहयोगी होगा, विकल्प नहीं : प्रो. अमरेंद्र त्रिपाठी
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- Dec 03, 2025
- “कम्प्यूटर की कृत्रिम मेधा और भाषा“ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
प्रयागराज, 3 दिसंबर (हि.स.)। हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में नया परिमल द्वारा हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के धीरेंद्र वर्मा सभागार में कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव के संरक्षण में बुधवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “कम्प्यूटर की कृत्रिम मेधा और भाषा“ विषय पर आयोजित किया गया।
बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. अमरेंद्र त्रिपाठी बताते हैं, जैसा कि कहा जा रहा है कि एआई मानव जाति की मेधा को अतिक्रमित कर देगी, लेकिन नवीन नवाचारों को लेकर प्रायः आशंकाएं उत्पन्न होती रही है और कुछ हद तक निरर्थक भी होती रही है। तो संभव है कि एआई के सम्बंध में भी ऐसा ही हो, क्योंकि कोई भी नवाचार मनुष्यता का सहयोगी होगा लेकिन विकल्प कभी नहीं हो सकता। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ विनम्र सेन सिंह ने किया। डॉ विजय कुमार रबिदास ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
प्रोफेसर सतीश सिंह ने एआई में संवेदनात्मक अनुभूतियों की सम्भावना को लेकर अवगत कराया कि यह तभी हो सकता है जब एआई में सूचना हमारे परिवेश के अनुरूप रहेंगी। तब वह भाषा, व्यवहार और अनुभूति के अनुरूप कार्य करेगा। प्रो अमिताभ सत्यम ने एआई को अपनी भाषा में विकसित करने, समझने तथा उसे भारतीय ज्ञान परम्परा से परिचित कराने पर जोर दिया। ताकि पश्चिमी देशों से पूर्वग्रह युक्त सूचनाओं से बचा जा सके।
प्रोफेसर योगेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मानव जाति को एक भ्रम है कि वह तकनीक का उपयोग कर रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि तकनीक मानव जाति की माइंड रीडिंग करके अपने अनुरूप चला रहा है। अब विज्ञान और मानविकी के विषयों को एक समन्वित दृष्टिकोण से देखा जाएगा। बुद्धिमत्ता से कहीं आगे जाकर मेधा की ओर बढ़ा रहा है, वह रचना भी कर सकता है। प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह ने भाषाई स्तर पर अभी तक हुईं दो क्रांतियों वाक् परम्परा और लिपिबद्धता की परम्परा का ज़िक्र करते हुए माना कि एआई के दौर में भाषाई स्तर पर ई लेखन तीसरी क्रांति है।
प्रोफेसर रामचंद्र ने कहा कि पहले पढ़े लिखे लोग अपढ़ लोगों से जानकारी लेकर प्रेम पत्र एवं चिट्ठी लिख देते थे। उसी तरह आज एआई भी सूचनाओं को प्रसंस्कृत करके प्रश्नों के उत्तर देता है। किंतु किसी पुस्तक का सारांश जरूरी नहीं की सही ही बताए। अतः वह मानव मस्तिष्क को फिलहाल विस्थापित नहीं कर सकता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. महावीर शरण जैन ने कहा कि भारतीय भाषा को भविष्य में पहुंचने के लिए एआई को निरंतर कई मुद्दों प्रयास करना आवश्यक है। जिसमें और अधिक खुले डाटा का संकलन कम संसाधन बोलियां पर विशेष ध्यान मॉडल प्रशिक्षण में सांस्कृतिक एवं भाषिक विविधता को कम करना तथा व्यापक समुदाय द्वारा तकनीकी उपकरणों को शामिल करना है। जिससे हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लिए एआई का परिदृश्य और भी समृद्ध एवं सशक्त होगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र



