भगवान का जन्म नहीं होता, वे हर बार अवतार लेकर भक्तों, गाय और ब्राह्मण की रक्षा करते हैं

भास्कर न्यूज | जालंधर अन्नपूर्णा मंदिर, कोट किशन चंद में अन्नपूर्णा जयंती के पावन अवसर पर श्रीमद्भागवत महापुराण साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए पंडित पंकज शर्मा ने बताया कि नैमिषारण्य में कथा सुनाने का आग्रह करते हुए शौनक आदि ऋषियों ने सूत जी से प्रश्न किया कि वेद और अन्य शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान अजन्मा हैं और उनका जन्म नहीं होता, फिर आप यह बता रहे हैं कि मथुरा में भगवान ने वसुदेव और देवकी के घर जन्म लिया। सूत जी ने बताया कि भगवान का जन्म नहीं होता यह सत्य है परंतु भगवान अवतार लेकर भक्तों, गाय और ब्राह्मण की रक्षा करते हैं। अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। गोकुल में खुशियां नवमी को मनाई गई। नंद बाबा ने आनंद में बहुत धन लुटाया। बहुत दान दिया। द्वादशी स्वयं भगवान शंकर श्री कृष्ण का दर्शन करने के लिए पधारे। उधर, कंस को महामाया की चेतावनी से ही पता चल गया था कि उन्हें मारने वाला पैदा हो चुका है। उसने नवजात शिशुओं को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को नियुक्त किया। पूतना बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली रूप बनाकर छठे दिन गोकुल में आई। वहां जाते ही उसे पता चल गया कि गांव में कुछ दिन पूर्व ही नंद के घर पुत्र पैदा हुआ है। वह इठलाती हुई नंद भवन पहुंची। उसकी सुन्दरता और प्रभाव के कारण किसी ने उसे नहीं रोका। यशोदा माता के पास पहुंच कर उसने कहा कि मुझे ऐसा वरदान प्राप्त है कि जो बालक मेरा दूध पियेगा वह सदा स्वस्थ रहेगा। यशोदा उसे अनुमति देकर दूसरे कमरे में गई। पूतना ने अवसर पाकर बालक को गोद में उठाया और दूध पिलाने लगी। उसके स्तनों पर कालकूट विष लगा था। बालक कृष्ण ने दूध के साथ - साथ पूतना के प्राण भी खींच लिए। मरते समय उसका विशालकाय भयानक शरीर प्रकट हुआ। कंस ने बारी-बारी शकटासुर, तृणावर्त आदि कई राक्षसों को भेजा भगवान ने सब का उद्धार किया। यहां अन्नपूर्णा मंदिर की गौशाला से नवजात बछड़े को कथा मंडाल में लाकर आरती की गई। यहां अन्नपूर्णा मंदिर प्रबंधक कमेटी के सदस्य और अन्नपूर्णा महिला संकीर्तन मंडल सदस्य भी मौजूद रहीं। एक बार दीवाली के अगले दिन दामोदर लीला की। उस दिन बहुत उत्पात किया। मां ने परेशान होकर डंडा उठा लिया। उनको रस्सी से बांधने लगी। पहले तो भगवान ने लीला की जब भी मां रस्सी से बांधने लगती तो रस्सी छोटी पड़ जाती। मां परेशान हो गई और उनकी परेशानी देखकर नंद लाल बंध गए। मां ने उन्हें ऊखल से बांध दिया। उन्होंने रेंगते हुए यमलार्जुन का उद्धार किया। आंगन में अर्जुन के दो पेड़ साथ-साथ थे उन के बीच में ऊखल फंसाकर उनको गिरा दिया। वे नलकुबेर और मणिकर्ण थे। वृक्ष गिरने पर जब वे सशरीर प्रकट हुए और कहा कि हम कुबेर के पुत्र हैं। नारद जी के श्राप से वृक्ष बने। कोई कितना ही ऊंचे कुल का हो मर्यादा लांघेगा तो उसे उसका फल भी भोगना पड़ेगा।