जालंधर के सड़क पर पड़ा शव:दो दिन बाद शव को हटाया,सीमा विवाद में उलझी रही थाना 3 और 4 की पुलिस
- Admin Admin
- Dec 30, 2025
जालंधर के व्यस्ततम क्षेत्र मिलाप चौक के पास एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहां एक व्यक्ति का शव पिछले दो दिनों से संदिग्ध परिस्थितियों में सड़क किनारे पड़ा रहा। हैरानी की बात यह है कि घटनास्थल से महज कुछ ही कदमों की दूरी पर थाना डिवीजन नंबर 3 स्थित है, लेकिन इसके बावजूद शव को कब्जे में लेने की बजाय पुलिस घंटों तक 'इलाका मेरा नहीं है' के विवाद में उलझी रही। स्थानीय एडवोकेट अशोक शर्मा की सक्रियता के बाद मामला उजागर हुआ, जिसमें पुलिस की कार्यप्रणाली और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अंत में थाना 4 के पुलिस अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर जांच शुरू की, लेकिन इस दौरान मानवता और पुलिस के 'जीरो नंबर एफआईआर' के दावों की पोल खुलती नजर आई। जालंधर के मिलाप चौक जैसे भीड़भाड़ वाले इलाके में एक 55 वर्षीय व्यक्ति की मौत के बाद उसका शव दो दिनों तक लावारिस हालत में पड़ा रहा। इस मामले का खुलासा तब हुआ जब एडवोकेट अशोक शर्मा को किसी राहगीर ने फोन कर सूचना दी कि सड़क पर एक व्यक्ति मृत अवस्था में है और उसे कोई उठाने वाला नहीं है। एडवोकेट ने बताया कि जब उन्होंने इस घटना की सूचना पास ही स्थित थाना डिवीजन नंबर 3 को दी, तो वहां से जवाब मिला कि यह क्षेत्र उनके अधिकार क्षेत्र (हद) में नहीं आता। इसके बाद जब थाना डिवीजन नंबर 4 को सूचित किया गया, तो उन्होंने भी वही तर्क दोहराते हुए पल्ला झाड़ लिया। एडवोकेट ने रोष प्रकट करते हुए कहा कि कानून की किताबों में 'जीरो नंबर एफआईआर' का प्रावधान है, जिसके तहत पुलिस को पहले पीड़ित की मदद करनी चाहिए और कार्रवाई शुरू करनी चाहिए, चाहे वह क्षेत्र किसी भी थाने का हो। उन्होंने चिंता जताई कि यदि समय रहते ध्यान न दिया जाता, तो आवारा कुत्ते शव को नुकसान पहुंचा सकते थे। हदबंदी के चक्कर में फंसी रही मानवता मामले के तूल पकड़ने के बाद थाना 4 के एएसआई हीरा लाल अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने प्रारंभिक जांच के बाद बताया कि मृतक एक भिखारी लग रहा है, जिसकी उम्र करीब 55 वर्ष है। एएसआई ने स्पष्ट किया कि उनकी जांच के अनुसार यह इलाका थाना 3 के अंतर्गत आता है। हालांकि, उन्होंने मानवता दिखाते हुए थाना 3 के मुंशी को सूचित किया और उनके आने तक वहां मौजूद रहे। तलाशी के दौरान मृतक के पास से कोई भी पहचान पत्र या दस्तावेज बरामद नहीं हुआ है। पुलिस का प्रारंभिक अनुमान है कि व्यक्ति लंबे समय से बीमार था और बीमारी के चलते ही उसकी मौत हुई है। लेकिन बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है कि शहर के बीचों-बीच स्थित थाने से कुछ कदमों की दूरी पर 2 दिन तक पुलिस को शव दिखाई क्यों नहीं दिया? प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर उठते सवाल स्थानीय लोगों और एडवोकेट अशोक शर्मा ने इस घटना को पुलिस की नाकामी करार दिया है। एडवोकेट ने कहा कि पुलिस का काम जनता की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन यहां पुलिस आपसी सीमा विवाद में इतनी उलझ गई कि एक इंसान के शव की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा गया। फिलहाल, पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है और उसे पहचान के लिए मोर्चरी में रखवाया जा रहा है। थाना 3 की पुलिस के पहुंचने के बाद ही कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी। यह घटना जालंधर पुलिस के लिए एक सबक है कि तकनीकी पेचीदगियों से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है।



